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________________ 98 वरंगचरिउ 10 करिवि थुत्ति खोणियलि णिविट्ठउ पुर–परियण सह लोयगरिट्ठउ। पुच्छइ महिवइ भत्ति कयायर' धम्मसरुव कहहि गुणसायर। णिव वयणइ सुणेवि मुणिसामिउ अक्खइ परमधम्मु सिवगामिउ। सम्मइंसणरयण करंडउ जो भवसायर तरणतरंडउ। पढमु धरिज्जइ सुहगइ-बंधणु किज्जइ चउगइ दुक्खहं रुंधणु। सो किं दंसणरयणु भणिज्जइ भणइ राउ सामिय दरसिज्जइ। इंद-पडिंद-चंद-विज्जाहर सुर-णर-चक्कवट्टि-हरिहलहर। जसु पयकमलरेणु सिरि घल्लहि णिच्चु वि पणवहि णिहणिय सल्लहि । सो जिंदेउ जिणवरु मण्णिज्जइ अणुदिणु णियमाणसि समरिज्जइ। वीयराउ वरकेवलवंतउ णिहणिउ मोहमल्लु बलवंतउ। सो जिंदेउ संसारहो तारइ अण्णु कुदेव ण करिहइ पारइ। धम्मु सोज्जि' जिणणाहें बुत्तउ दहलक्खणु पुण्णुदय संजुत्तउ। तसथावर जीवहंदय किज्जइ मारंतुवि णवि को मारिज्जइ। धम्मु अहिंसा लक्खणु वुत्तउ धारिज्जइ मणम्मि दिदु चित्तउ। सव्वसंगपरिचाउ जि किद्धउ विसयसुक्खसिहि पाणिउ दिद्धउ। तउ णिग्गंथु जेहिं दिदु धरियउ सुहि-दुहि तिण-कंचणु समसरियउ। सो गुरु सइ पुणु अण्णह तारइ दुग्गइ जंत जीवउ' साहारइ । सत्त तच्च पुणु णववि पयत्थह रिउदव्वहं काय वि पंचत्यह" । जं सद्दहणु करिज्जइ णियमणि तं सम्मत्तु होइ जगि दिणमणि । घत्ता- संमत्तपहावें अकुडिल भावें णरइ णिगोय ण गच्छइ। तिरियत्तु ण पावइ कयवहु आवइ मरिवि सुसग्गहो अच्छइ।।१०।। 11 समत्तें विणु वयाइ' णिरत्थइ वय विणु मणुयजम्मु अकयत्थइ। रुइसहियउ सायारु वि धम्मउ एवहि अक्खमि सुणि कय सम्मउ। पढमउ वसणराउ परिच्छंडहु जूवरमणि अप्पउ ण विहंडउ। जूव अणत्थमूलभवकारणु जूवउ देइ दुक्ख अइदारणु। णियधणु हारइ जूवारिउ णरु परधणु वंछइ छंडइ णियघरु। 10. 1 A, कयायरं 2 A,परमं धम्मु 3 A,K, वंधणु 4 A, णिहणेय 5 A,सों 6 K,जिदेउ 7 A,K, सोजि 8 A,K, पुणुदय 9 A,K,N णिगंथु 10 A,K,N,जेहि 11A,K,N, सई 2 A,जंतजीव K,जंतजीवउ 13 K,पयछहं 14 A,K,N,पंच्चत्थहं 11.1 A,K,N,वइय 2 K,वछंइ
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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