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________________ 20/ स्वरूप-संबोधन-परिशीलन श्लो . : 2 श्लोक-2 उत्थानिका- यहाँ पर जिज्ञासा करता है- भगवन्! जो ज्ञायक-स्वभावी परम तत्त्व है, वह कैसा है?.... समाधान- आचार्य-भगवन् कहते हैंसोऽस्त्यात्मा सोपयोगोऽयं' क्रमाद्धेतुफलावहः । यो ग्राह्योऽग्राह्यनाद्यन्तः स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मकः ।। अन्वयार्थ- (अयं) जो, (सोपयोगः) दर्शन-ज्ञान-उपयोग वाला है, (क्रमात्) क्रम से, (हेतुफलावहः) कारण और उसके फल यानी कार्य को धारण करने वाला है, (ग्राह्यः) ग्रहण करने योग्य है, (अग्राह्य) अग्राह्य है, (अथवा) (अग्राही) यानी ग्रहण करने वाला नहीं है, (अनाद्यनन्तः) अनादि और अनन्त है, (स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मकः) उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य रूप है, (सः) वह प्रसिद्ध है, (अयं) (इस प्रकार) यह जीवित शरीर में वर्तमान, (आत्मा) आत्मा, (अस्ति) है। 12 || परिशीलन- अनादि-अविद्या के वश होकर अज्ञ जीवों ने परम-तत्त्व का कथन विपरीत रूप से करके स्वात्मा का भवार्णव में पतन किया है, सत्य का कथन परमतत्त्व को अनुभव करने वाले, मोह से आच्छादित पुरुष सम्यग्रूपेण नहीं कर पाते हैं; .....क्या करूँ?..., मिथ्यात्व का प्रभाव ही ऐसा है, जो भूतार्थ को अभूतार्थ-रूप देखता है। सत्यार्थ को सत्यार्थ समझने के लिए भी प्रबल पुण्य चाहिए पड़ता है, मिथ्या धारणा के पंक से स्वात्मा की रक्षा विवेकशील प्राणी ही कर पाता है। जिस जीव की संसार-संतति दीर्घ है, उसे परम-तत्त्व के प्रति जिज्ञासा-भाव भी नहीं आता, अपने क्षयोपशम का उपयोग जड़ द्रव्य में करता है, पर चैतन्य-ज्ञान स्वात्म-द्रव्य के प्रति उदास रहता है। ज्ञानियो! यह अन्तरंग का विषय है, पर समझो कि बड़े-बड़े दीर्घ तपस्वी भी परम-तत्त्व के प्रति उदासीन दिखायी देते हैं। उपयोग की धारा एक-समय 1. प्राचीन संस्कृत-टीका में व पण्डित खूबचन्द्र शास्त्री ने भी "सोपयोगोऽयं" पाठ ही स्वीकार किया है, जबकि कुछेक विद्वान् “सोपयोगो यः" पाठ मानते हैं, बहु-प्रति-उपलब्धता भी 'अयं' वाले पाठ की ही है, अतः वही यहाँ स्वीकारा गया है। 2. "ग्राह्योऽग्राह्यनाद्यन्तः" के स्थल पर कुछ विद्वान् व कुछ प्रतियो में "ग्राह्यो ग्राह्यनाद्यन्तः" पाठ भी मानते हैं, पर अनेकान्तात्मक विधि-निषेध-अर्थ में वह पाठ संगत नहीं लगता।
SR No.032433
Book TitleSwarup Sambodhan Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhasagar Acharya and Others
PublisherMahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
Publication Year2009
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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