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________________ 2081 स्वरूप-संबोधन-परिशीलन । श्लो . : 25 श्लोक-25 उत्थानिका- शिष्य आचार्य-प्रवर के श्री-पाद-कमल में जिज्ञासा प्रकट करता है- भगवन्! अभेद षट्-कारक रूप से अपने स्वरूप का ध्यान करने पर किस फल की प्राप्ति होती है? ....... समाधान- आचार्य-देव अत्यन्त वात्सल्य-भाव से कहते हैं कि हे वत्स! अभेद षट्-कारक की अभिव्यक्ति-रूप सात विभक्तियों के ध्यान से परमानन्द की प्राप्ति होती है। उसे सुनो स्वः स्वं स्वेन स्थितं स्वस्मै स्वस्मात्स्वस्याविनश्वरम् । स्वस्मिन् ध्यात्वा लभेत् स्वोत्थमानन्दामृतं पदम् ।। अन्वयार्थ- (स्वः) निज आत्मा, (स्वं) अपने स्वरूप को, (स्वेन) अपने द्वारा, (स्थित) स्थित, (स्वस्मै) अपने लिए, (स्वस्मात्) अपनी आत्मा से, (स्वस्य) अपनी आत्मा का, (स्वोत्थं) अपनी आत्मा से उत्पन्न हुआ, (अविनश्वरम्) अविनाशी, (आनन्दामृतं पदम्) आनन्द व अमृत-मय पद, (स्वस्मिन्) अपनी आत्मा में, (ध्यात्वा) ध्यान करके, (लभेत्) प्राप्त करे।।25।। - परिशीलन- तत्त्व-ज्ञान सर्वोपरि है, तत्त्व-बोध-विहीन पुरुष अन्धों में महा-अन्धा है, -ऐसा समझना चाहिए, नर-देह प्राप्त करके सर्व-श्रेष्ठ कार्य तत्त्व-ज्ञान प्राप्त करना ही है, ज्ञान मनुष्य-जीवन का सार है, सत्यार्थ-मार्ग पर आस्था, तत्त्व-बोध एवं सम्यगाचरण, –ये ही मनुष्य को महान् बनाते हैं, अनाकुल-जीवन की शैली का बोध तो आगम के अध्ययन से ही होता है, बिना आगम-अध्ययन के सभी आचरण अधूरे-अधूरे से लगते हैं, परम-समरसी-भाव के तल-स्पर्शी ज्ञाता बनने के लिए स्व-समय में लगना होगा, बिना तत्त्व-निर्णय के सम्पूर्ण क्रियाएँ रूढ़ि-भूत दिखती हैं, आत्म-ज्ञान को भी तर्क से, बुद्धि से प्राप्त करना चाहिए। आत्म-ज्ञानी साधक व्यर्थ के आडम्बरों से प्रति-क्षण आत्म-रक्षा करता है, एक श्वास-प्रमाण-काल पुनः प्राप्त नहीं होता। रागी दिन-के-दिन पर की चिन्ता में पूर्ण कर रहा है, वे पुरुष धन्य हैं, जो एक-क्षण-मात्र भी विलम्ब न करके शीघ्र जिन-मुद्रा की प्राप्ति के पुरुषार्थ में लग गए, 1. इस श्लोक का निम्नांकित पाठान्तर और है स्वः स्वं स्वेन स्थिरं स्वस्मै स्वस्मात्स्वस्याविनश्वरे। स्वस्मिन् ध्यात्वा लभेस्वेत्थमानन्दामृमतं पदम्।।
SR No.032433
Book TitleSwarup Sambodhan Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhasagar Acharya and Others
PublisherMahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
Publication Year2009
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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