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________________ श्लो. : 11 स्वरूप-संबोधन-परिशीलन 1103 नहीं है, आत्म-सिद्धि का मार्ग निःशंकता है। सम्यग्दृष्टि जीव निःशंकादि सम्यक्त्व-गुणों से सहितएवं सप्तभय से रहित होता है, तत्त्व में यथार्थ-आस्था से युक्त होता है। कैसे श्रद्धान करता है, किस पर करता है? ...ऐसा प्रश्न करने पर आचार्य महाराज कहते हैं जीवादयो नवाप्यर्था ये यथा जिनभाषिताः। ते तथैवेति या श्रद्धा सा सम्यग्दर्शनं स्मृतम्।। -तत्त्वानुशासन, श्लो. 25 अर्थात् जीव आदि जो नौ पदार्थ जिनेन्द्र भगवान् ने जैसे-कहे हैं, वे वैसे ही हैं, इस प्रकार का जो श्रद्धान है, वह सम्यग्दर्शन कहा जाता है। आचार्य भगवन् कुन्दकुन्ददेव ने समयसार ग्रन्थ में सम्यक्त्व को परिभाषित करते हुए कहा है भूदत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्णपावं च। आसव-संवर-णिज्जर-बंधो-मोक्खो य सम्मत्तं।। -समयपाहुड, गा. 13 अर्थात् भूतार्थ से जाने हुए जीव, अजीव और पुण्य, पाप तथा आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष, –ये नौ तत्त्व सम्यक्त्व हैं। जो जीवादि नौ तत्त्व हैं, वे भूतार्थ-नय से जाने हुए सम्यग्दर्शन ही हैं, –यह नियम कहा है, क्योंकि जीव, अजीव, पाप, पुण्य, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष-लक्षण वाले व्यवहार-धर्म की प्रवृत्ति के अर्थ ये जीवादि नव तत्त्व अभूतार्थ (व्यवहार) नय से कहे हुए हैं, उनमें एकत्व प्रकट करने वाले भूतार्थ नय से एकत्व प्राप्त कर शुद्ध नय से स्थापन किये गए आत्मा की ख्याति लक्षण वाली अनुभूति की प्राप्ति होती है, क्योंकि शुद्ध नय से नव-तत्त्वों को जानने से आत्मा की अनुभूति होती है, उनमें से विकारी होने योग्य और विकार करने वाला -ये दोनों पुण्य भी हैं और पाप भी हैं तथा आस्रव्य (आस्रवरूप होने योग्य) व आस्रावक (आस्रव करने वाले) ये दोनों आस्रव हैं, संवार्य (संवर रूप होने योग्य) व संवारक (संवर करने वाले) -ये दोनों संवर हैं। निर्जरने योग्य व निर्जरा करने वाले -ये दोनों निर्जरा हैं। बँधने योग्य व बन्धन करने वाले -ये दोनों बन्ध हैं और मोक्ष होने योग्य व मोक्ष करने वाले -ये दोनों मोक्ष हैं, क्योंकि एक के ही अपने-आप पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष की उपपत्ति (सिद्धि) नहीं बनती तथा वे
SR No.032433
Book TitleSwarup Sambodhan Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhasagar Acharya and Others
PublisherMahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
Publication Year2009
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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