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________________ निर्जरा भावना ५१ निष्कामभाव से किया हुआ तप ताप का उपशमन करता है, पाप का विलय करता है, मनरूपी हंस को रमण कराता है और विमूढ़ता का हरण करता है, ऐसे तप पर आरोहण करना बड़ा कठिन काम है। संयमकमलाकार्मण 'मुज्ज्वलशिवसुखसत्यंकारम् । चिन्तितचिन्तामणिमाराधय, तप इह वारं वारम् ॥७॥ जो संयमरूपी लक्ष्मी के लिए वशीकरणमंत्र है, मोक्ष के विमल सुखों के लिए सांई (अग्रिम राशि ) है, मनोरथपूर्ति के लिए जो चिन्तामणि रत्न है, उस तप की तू बार-बार आराधना कर । कर्मगदौषधमिदमिदमस्य च, जिनपतिमतमनुपानम् । विनय ! समाचर सौख्यनिधानं, शान्तसुधारसपानम्॥८॥ यह तप कर्म-रोग को मिटाने के लिए औषध है और इसका अनुपान है - तीर्थंकर सम्मत शान्तसुधारस का पान । हे विनय ! यह सुख का निधान है। तू इसका समाचरण कर । १. कार्मणं - अत्र 'कर्मणोऽण्' (भिक्षु. ७/४/८७) इति सूत्रेण संदिष्टेर्थे कर्मशब्दात् स्वार्थे अण् प्रत्ययः । कर्मैव कार्मणम् । वशीकरणमपि वृद्धपरंपरोपदेशात् क्रियते इति कार्मणमुच्यते । 'कार्मणं मूलकर्म' (अभि. ६ / १३३) । मूलैरौषधिभिर्वशीकरणं मूलकर्म । २. 'सत्यंकारः सत्याकृतिः' (अभि. ३ / ५३६) ।
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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