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________________ संवर भावना ४५ आर्त रौद्रं ध्यानं मार्जय, दह विकल्परचनाऽऽनायम्। यदियमरुद्धा मानसवीथी, तत्त्वविदः पन्था नाऽयम्॥४॥ तू आर्तध्यान और रौद्रध्यान का परिमार्जन कर, विकल्प के रचनाजाल को जला डाल। मानसिक विचारों की जो यह अनिरुद्ध श्रेणी है वह तत्त्वज्ञव्यक्तियों का मार्ग नहीं है। संयमयोगैरवहितमानसशुद्ध्या चरितार्थय कायम्। नानामतरुचिगहने भुवने, निश्चिनु शुद्धपथं नायम् ॥५॥ तू संयमयोग तथा समाधियुक्त मानसिक शुद्धि से इस शरीर को चरितार्थ कर और पृथक्-पृथक् मतों की रुचि से जटिल बने हुए इस संसार में शुद्ध मार्ग वाली नीति का निश्चय कर। ब्रह्मव्रतमङ्गीकुरु विमलं, बिभ्राणं' गुणसमवायम्। उदितं गुरुवदनादुपदेशं, संगृहाण शुचिमिव रायम्॥६॥ गुणसमूह को धारण करने वाले विमल ब्रह्मचर्यव्रत को तू स्वीकार कर तथा गुरुमुख से निःसृत उपदेश का तू पवित्र सुवर्ण की तरह संग्रह कर। संयमवाङ्मयकुसुमरसैरति सुरभय निजमध्यवसायम्। चेतनमुपलक्षय कृतलक्षणज्ञानचरणगुणपर्यायम्॥७॥ संयम और जिनवाणीरूपी पुष्परस से तू अपने अध्यवसाय को अत्यन्त सौरभमय बना तथा ज्ञान-चारित्र-गुण-पर्याय लक्षण वाले अपने चेतन को तू जान। वदनमलङ्कुरु पावनरसनं, जिनचरितं गायं गायम्। सविनयशान्तसुधारसमेनं, चिरं नन्द पायं पायम्॥८॥ जिह्वा को पावन बनाने वाले वीतराग भगवान के चारित्र को गा-गाकर तू अपने मुख को अलंकृत कर और विनययुक्त इस शान्तसुधारस को पीपीकर चिरकाल तक आनन्द का अनुभव कर। १. यहां पर 'नायं' विशेष्य तथा शुद्धपथं विशेषण है, जिसका अर्थ है शुद्धमार्ग वाली नीति। 'नायम्' 'दुनीभुवं' (भिक्षु. ५/१/७४) सूत्र से नी धातु से कर्ता में ण प्रत्यय हुआ है। 'शुद्धपथ' यहां 'ऋक्पुरप्पथिभ्यः समासे' (भिक्षु. ८/३/५६) इस सूत्र से समासान्त अ प्रत्यय हुआ है। २. यहां 'डु,नक् पोषणे च' धातु से शान् प्रत्यय हुआ है। ३. यहां उद् उपसर्ग सहित 'इंण्क् गतौ' धातु से क्त प्रत्यय हुआ है।
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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