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________________ शान्तसुधारस जिन्हें जीतना अशक्य है उन अशुभ योगों को तू तीन गुप्तियों के द्वारा शीघ्रता से जीतकर संवरमार्ग पर चलने का सम्यक् प्रयत्न कर। उससे तू अनभिलषित (अकल्पित ) और प्रदीप्त हित (मोक्ष) को प्राप्त होगा। 'एवं रुद्धेष्वमलहृदयैराश्रवेष्वाप्तवाक्य ४४ ५. श्रद्धाचञ्चत्सितपटपटुः सुप्रतिष्ठानशाली । शुद्धैर्योगैर्जवनपवनैः प्रेरितो जीवपोतः, स्रोतस्तीर्त्वा भवजलनिधेर्याति निर्वाणपुर्य्याम् || इस प्रकार निर्मलचित्त से आस्रवों का निरोध करने पर यह जीवरूपी पोत, जो आप्तवचनों की श्रद्धा से मंडित श्वेत पताका से सुन्दर और शुभभावरूपी आधार-स्तम्भ से समन्वित है, शुद्धयोगरूपी वेगवान् पवन से प्रेरित होकर भव-समुद्र के स्रोत को पारकर शिवपुरी पहुंच जाता है। गीतिका ८ : नटरागेण गीयते शृणु शिवसुखसाधनसदुपायं, सदुपायं रे! सदुपायम् । ज्ञानादिकपावनरत्नत्रय - परमाराधनमनपायम्॥१॥ तू मोक्षसुखप्राप्ति के सदुपाय को सुन । वह सदुपाय है - ज्ञानदर्शनचारित्ररूपी पावन रत्नत्रयी की निर्बाध और उत्कृष्ट आराधना । विषयविकारमपाकुरु दूरं, क्रोधं मानं सहमायम् । लोभरिपुं च विजित्य सहेलं, भज संयमगुणमकषायम्॥२॥ तू विषयविकारों को दूर कर, क्रोध, मान, माया और लोभरूपी शत्रुओं को सहजभाव से जीतकर कषायमुक्त संयमगुण का आसेवन कर । मनसा उपशमरसमनुशीलय रोषदहनजलदप्रायम्। कलय विरागं धृतपरभागं, हृदि विनयं नायं नायम् ॥ ३॥ क्रोधरूपी अग्नि को उपशान्त करने के लिए मेघतुल्य उपशमरस का तू मानसिक अनुशीलन कर और अपने अन्तःकरण में विनय को प्रचुरमात्रा में उपलब्ध कर गुणोत्कर्षयुक्त वैराग्य को धारण कर । १. मन्दाक्रान्ता। २. 'परभागो गुणोत्कर्षो' (अभि. ६ / ११)।
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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