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________________ अन्यत्व भावना तू जन्म-जन्मान्तर में नाना प्रकार के पदार्थों का संग्रह करता है, कुटुम्ब का भरण-पोषण करता है। तेरे परलोक जाने के समय उनमें से एक पतला धागा भी तेरे साथ नहीं जाता। त्यज ममतां परितापनिदानं, परपरिचयपरिणामम्। भज निस्संगतया विशदीकृतमनुभवसुखरसमभिरामम्॥४॥ तू ममता को छोड़, जो परिताप का कारण है और जो दूसरों के साथ परिचय करने से उत्पन्न होती है। निर्लेपता से निर्मल बने हुए अभिराम अनुभवसुखरस का तू अनुशीलन कर। पथि पथि विविधपथैः पथिकैः सह, कुरुते कः प्रतिबन्धम्? निजनिजकर्मवशैः स्वजनैः सह, किं कुरुषे ममताबन्धम्।।५।। भिन्न-भिन्न मार्गों से जाने वाले यात्रियों के साथ कौन व्यक्ति पथ-पथ पर उनसे प्रतिबन्धित होता है? अपने-अपने कर्मों के अधीन बने हुए पारिवारिक जनों के साथ तू क्यों ममता का बन्धन कर रहा है? प्रणयविहीने दधदभिषङ्गं, सहते बहुसन्तापम्। त्वयि निष्प्रणये पुद्गलनिचये, वहसि मुधा ममतातापम्॥६॥ जिस प्रकार प्रेमविहीन व्यक्ति में अनुरक्त होता हुआ मनुष्य अनेक संतापों को सहता है, उसी प्रकार तेरे प्रति प्रेमशून्य इस पुद्गल-समूह में तू आसक्त बना हुआ व्यर्थ ही ममता के ताप को झेल रहा है। त्यज संयोगं नियतवियोगं, कुरु निर्मलमवधानम्। नहि विदधानः कथमपि तृप्यसि, मृगतृष्णाघनरसपानम्।।७।। जिसका निश्चित वियोग होता है उस संयोग को तू छोड़ और अवधान (चैतसिक अवस्था) को निर्मल बना। मृगतृष्णा के जल को पीता हुआ तू किसी भी प्रकार अपनी प्यास नहीं बुझा पाएगा। भज जिनपतिमसहायसहाय, शिवगतिसुगमोपायम्। पिब गदशमनं परिहृतवमनं, शान्तसुधारसमनपायम्॥८॥ तू जिनेन्द्र-देव का स्मरण कर, जो असहायों के सहायक हैं और शिवगति-प्राप्ति के लिए सरल उपाय हैं। तू शान्तसुधारस का पान कर, जो शारीरिक और मानसिक रोगों का उपशमन करने वाला है तथा जिसका वमन नहीं होता-पीने के बाद जो भीतर रम जाता है और जो निर्दोष है।
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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