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________________ १२६ शान्तसुधारस झलक रही थी। महाराज श्रेणिक भी उनकी ध्यानस्थ सौम्यमुद्रा को देखकर गद्गद हो उठे और उनका अन्तःकरण बोल उठा हे महामुने! आप धन्य हैं, पुण्यशाली हैं, जो इतनी उत्कृष्ट साधना कर रहे हैं। आपकी सतत जागरूकता और अप्रमत्तता ने निश्चित ही कर्मों को क्षीण किया और आप इस भवसागर को तर गए हैं। प्रभो! आप जैसे महामुनि का दर्शन पाकर मैं सनाथ और कृतपुण्य हो गया हूं। मेरे अनिमेष नेत्र आपकी इस भव्यमुद्रा को देखकर तृप्त हो गए हैं। सम्राट् श्रेणिक पुनः पुनः मुनि का गुणानुवाद कर रहे थे और मुनि मौन खड़े थे। राजर्षि को देखकर राजा श्रेणिक के अन्तःकरण में श्रद्धा का एक बीज वपन हुआ और वे अन्तर्जिज्ञासा को लेकर वहां से प्रस्थित हो गए। उतार-चढ़ाव जीवन की शाश्वत प्रक्रिया है। कभी व्यक्ति ऊपर चढ़ता है तो कभी नीचे की ओर फिसल जाता है। सारी परिस्थितियां, सारा समय और सारे परिणाम सर्वदा एक समान नहीं होते। कभी-कभी उनमें नाटकीय ढंग से परिवर्तन भी हो जाता है। राजर्षि प्रसन्नचन्द्र अभी तक अपनी ध्यान-साधना के द्वारा शुद्ध अध्यवसायों में आरोहण कर रहे थे। उनके अन्तःकरण की पवित्रता बढ़ती जा रही थी। सहसा महाराज श्रेणिक के पीछे-पीछे एक व्यक्ति वहां से गुजरा। जब उसने राजर्षि को ध्यान करते हुए देखा तो उसका मन ईर्ष्या से भर गया। वह भावावेश में अनर्गल प्रलाप करता हुआ बोल उठा–अरे ढोंगी साधु! तू अपनी साधना का क्या प्रदर्शन कर रहा है! शत्रुसेना ने तेरे राज्य को घेर रखा है। जरा अपने कर्तव्य-अकर्तव्य का विवेक कर, केवल आंख मूंदने से ही कुछ नहीं होता। तेरा वह एकाकी और नाबालिग पुत्र कैसे शत्रुसेना से लोहा ले सकेगा? जिसके अभी तक दाढ़ी-मूंछ के बाल भी नहीं उगे हैं, तूने उस नन्हें सुकोमल बालक के हाथ में राज्यसत्ता की डोर थमा दी, दर्बल कन्धों पर विशाल राज्य का भार डाल दिया और स्वयं यहां निश्चिन्त होकर, कायर बनकर बैठ गया। क्या यह पलायन की मनोवृत्ति नहीं है? क्या तुझे शर्म नहीं आती? अभी कुछ नहीं बिगड़ा है, अपने पौरुष को संभाल, कुछ पराक्रम दिखा, अन्यथा कुछ ही क्षणों में सर्वनाश हो जाएगा। शब्दों ने राजर्षि के मर्मस्थल पर गहरा आघात किया। वे ध्यान से विचलित हो गए, श्रामण्य को भूल गए। एक ओर उन्हें पुत्र का भयाकुल चेहरा दृग्गोचर हो रहा था तो दूसरी ओर राज्यसत्ता का किसी दूसरे के हाथ में जाने का भय था। सुषुप्त अहंकार और ममकार जाग उठा। राज्य के प्रति, पुत्र के
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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