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________________ १२२ शान्तसुधारस __चक्रवर्ती सनत्कुमार अन्य दिनों की अपेक्षा आज अपने रूप को दिखाने की आशंसा से स्नान करने में अतिरिक्त श्रम और समय लगा रहे थे। उनका शरीर कपूर, अगर, कंकोल, कस्तूरी और चन्दन आदि सुगन्धित द्रव्यों से सुगन्धित हो रहा था। राजसिक वस्त्राभूषणों से उनका अंग-अंग विभूषित था। निश्चित समय पर वे राजसभा में पहुंचे। चक्रवर्ती का रत्नजटित सिंहासन और मस्तक पर सुशोभित होने वाला चक्रवर्ती का छत्र। दोनों ओर चंवर डुलाती हुई परिचारिकाएं और परिचर्या में समीपस्थ बैठे हुए महामात्य, सामन्त, सभासद्, अंगरक्षक तथा नगर के दूसरे गण्यमान्य व्यक्ति। उस समय का दृश्य ऐसा लग रहा था कि मानो कोई शचीपति सुधर्मासभा में अपने स्वर्गसदों के बीच बैठा हो और जगतीतल को प्रकाशित करने वाला चन्द्रमा नक्षत्रगण से परिवृत होकर जगमगा रहा हो। दोनों ब्राह्मण टकटकी लगाए महाराज को देख रहे थे। सम्राट ने तत्काल ब्राह्मणों से पूछा विप्रवरो! देखा न आपने! क्यों? कैसा रहा आपका अनुभव? ब्राह्मण कहें तो क्या कहें। उन्होंने पहले जो रूप देखा था वह समाप्त हो चुका था। सरसता विरसता में बदल चुकी थी। सहसा ब्राह्मणों ने अस्वीकृतिसूचक माथा हिलाया। चक्रवर्ती सनत्कुमार अपने आपमें विस्मयातिरेक से भर गए। उन्होंने मन ही मन सोचा कैसे अजीब आदमी हैं कि जो सचाई को छिपा रहे हैं। क्या मेरे रूप के पिपासु ये ब्राह्मण अब इस रूप से ऊब चुके हैं? क्या मेरा रूप पहले से कम है? नहीं, नहीं, लगता है कि इन्होंने अभी तक ठीक प्रकार से समझा ही नहीं है। महाराज को उनके अस्वीकृति सूचक संकेत पर विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने प्रश्न की भाषा में फिर पूछा-क्यों? ब्राह्मणो! क्या हुआ? महाराज! जो होना था हो गया, अब वह बात नहीं रही, जो पहले थी। आपका रूप विरूप हो चुका है। यदि फिर भी आपको विश्वास न हो तो जरा थूककर देख लें। ज्यों ही सम्राट ने पीकदानी में थूका, सारी सचाई प्रत्यक्ष हो गई। उसमें संख्यातीत कीड़े बिलबिला रहे थे। इस दृश्य को देखकर महाराज हक्के-बक्के से रह गए। क्षणभर उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि एक-दो घंटे के अन्तराल में शरीर में इतना कुछ परिवर्तन भी घटित हो सकता है। उनके शरीर में एक नहीं, सोलह-सोलह महाभयंकर रोग उत्पन्न हो चुके थे। जो फूल प्रभात में अपनी डाली पर मुस्करा रहा था, वही अब मुरझाया हुआ बिलख रहा था। महाराज सनत्कुमार अपने आपमें अनुताप के आंसू बहा रहे थे। इस आकस्मिक परिवर्तन से उनका मन शरीर की
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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