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________________ संसार भावना ३. अमरत्व की खोज हर्म्य के वातायन में बैठा हुआ श्रेष्ठिपुत्र थावच्चा खुले आकाश में निहार रहा था। उसका अबोध मानस जगत् की विचित्रता से बिल्कुल अनभिज्ञ और अजानकार था। यह रंग-बिरंगी दुनिया उसके लिए सुखद स्वप्न और नया-नया-सा अनुभव देने वाली थी। अभी तक उसने इस स्वप्निल संसार में कल्पना की पांखों पर ही बड़ी-बड़ी उड़ानें भरी थीं। यथार्थता और वास्तविकता क्या है, न कभी उसने जाना और न ही उसे समझा। उसकी बाल-सुलभ क्रीड़ाएं और भोलीभाली आकृति सत्य को जानने-परखने के लिए लालायित थी तो अर्धस्खलित और तूतली भाषा सत्य की पिपासु थी। प्रकृति के वातावरण को देखता हआ कभी वह नीले आकाश की नीलिमा को देखने में अनुरक्त हो जाता तो कभी मथुरा के विशाल जनपथ को देखने के लिए मचल उठता। गगनचुम्बी अट्टालिकाएं और उनको मंडित करने वाली सहस्रांशु की सुनहली किरणें, बड़ी-बड़ी पण्यशालाएं, सज्जित चौड़े-चौड़े बाजार और उनमें बिकने वाली नानाविध वस्तुएं तथा राजपथ से गुजरने वाले राहगीर थावच्चा के नयनों को कौतूहल से भर रहे थे। प्रकृति के इस सहज दर्शन से उसका अन्तर्मानस बरबस झंकृत हो उठा, सौम्य वदन पर प्रफुल्लता खिल उठी और मानो कोई उसे स्वर्गीय आनन्द मिल गया। पर कुमार इस आनन्द से अधिक समय तक तृप्त नहीं रह सका। सहसा उसका मानस कर्णयुगल में प्रतिध्वनित होने वाले शब्दों में उलझ गया। उलझना स्वाभाविक भी था। कुमार ने उन शब्दों को जीवन में प्रथम बार ही सुना और प्रथम बार ही अनुभव किया था। वे शब्द न जाने कितने श्रुतिपुटसुखद, मन को बहलाने वाले, माधुर्यरस से परिपूर्ण, सुरीले कण्ठों से गीयमान और अमृतरस को बिखेरने वाले थे। बालक की हृद्तंत्री सहसा उन शब्दों से झंकृत हो उठी।
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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