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________________ पशु, पक्षी सबका स्तर पृथक् है। स्वभाव, रुचि का वैषम्य है। एक आत्मा हो तो स्वभाव, रुचि और श्रेणी की मित्रता क्यों ? वेदान्त में आत्मा को आनन्दमय कहा है। सांख्य इसके पक्ष में नहीं। उनके मत से चेतना और आनन्द भिन्न हैं। आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं होता। कूटस्थ नित्य है। सुख-दुःखादि प्रकृति से उत्पन्न है। पुरुष की सत्ता सिद्ध करने के बाद भी सांख्य दर्शन इसकी प्रामाणिकता के लिये पुष्ट तथ्य प्रस्तुत करता है संघात परार्थत्वात् त्रिगुणादि विपर्ययादधिष्ठानात्। पुरुषोऽस्ति भोक्तृत्वात् केवल्यार्थ प्रवृत्तेश्च।।" १. दुनिया के सभी पदार्थ संघातमय हैं। वस्त्र अनेक तंतुओं का समूह है। वस्तु-मात्र सावयव भी है। अवयवों से निष्पन्न वस्तु साधन रूप है। साधन का प्रयोक्ता ही विलक्षण पुरुष है। २. चेतनारहित जड़ पदार्थ गतिशून्य होता है। जैसे रथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित तभी होगा जब उसका नियंता चेतन सारथि हो। वैसे ही जड़ प्रकृति या सुख-दुःख, मोहात्मक जगत् किसी चेतन के द्वारा अधिष्ठित होकर ही प्रवृत्त है। अतः प्रकृति तथा उसके नियन्ता रूप में पुरुष की सत्ता प्रमाणित है। ३. संसार के विषय मात्र भोग हैं। भोग है वहां भोक्ता भी अवश्य है। भोक्ता के बिना भोग-सामग्री की उपयोगिता क्या ? अतः जो भोक्ता है वही पुरुष है। संसार के दुःखों से व्यथित होकर कुछ लोग जब शाश्वत सुखाभिमुख होते हैं-यह प्रयास जड़ पदार्थ में नहीं होता। मुक्ति के लिये पुरुषार्थ करना इस बात का साक्षी है कि कोई ऐसा तत्त्व है जो क्लेशों से निवृत्ति चाहता है। वही पदार्थ पुरुष है। सांख्य आत्मा को नित्य और निष्क्रिय मानते हैं अमूर्तश्चेतनो भोगी, नित्यः सर्वगतोऽक्रियः। अकर्ता निर्गुणः सूक्ष्मः आत्मा कपिल दर्शने।। पुरुष-प्रकृति परस्पर भिन्न लक्षण वाले हैं। पुरुष ज्ञाता, चेतन, निष्क्रिय, भोक्ता, प्रमाता, निर्गुण, सूक्ष्म है। प्रकृति जड़, सक्रिय, भोग्य, प्रमेय, अहंकारयुक्त और त्रिगुणात्मक है। .४८ - जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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