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________________ हर्बर्ट स्पेन्सर के अनुसार-'जीव एक मौलिक तत्त्व है। वह अजैविक तत्त्व की उपज नहीं है और न उसका अजीव तत्त्व में अन्तर्भाव हो सकता है। ___ वैज्ञानिक जीवन की अभिव्यक्ति योग्य परिस्थिति, योनि के स्थान का अभियोजन कर सकता है। परखनली, क्लोनिंग का उदाहरण प्रत्यक्ष है किन्तु जीव सृष्टि के देह की रचना, सजीव बीज के बिना केवल रासायनिक घटकों से असंभव है। अतः चेतना की उत्पत्ति का प्रश्न निराकरणीय है। आत्मा की व्युत्पत्ति आत्मन् शब्द अनेक धातुओं से निष्पन्न है। उत्तराध्ययन सूत्र के टीकाकार ने 'अतति-सन्ततंगच्छति शुद्धि संक्लेशात्मक परिणामान्तराणीत्यात्मा' अर्थात् जो विविध भावों में परिणत होती है, वह आत्मा है।८२ द्रव्य संग्रह के टीकाकार ने आत्मा शब्द की विस्तार से परिभाषा दी है-'अत' धातुः सातत्य गमनेऽर्थे वर्तते। गमन शब्देऽनात्रज्ञानंभण्यते 'सर्वेगत्यार्था ज्ञानार्था इति वचनात् तेन कारणेन यथा संभवं ज्ञान-सुखादि गुणेषु आ समन्तात् अतति वर्तते यः स आत्मा भण्यते। अथवा शुभाशुभ मनोवचनकाय व्यापारैर्यथासंभवं तीव्रमंदादिरूपेण आ समन्तादतति वर्तते यः स आत्मा। अथवा उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ये रासमन्तादतति वर्तते यः स आत्मा ।८३ अर्थात् अत धातु का प्रयोग गमन अर्थ में होता है। यहां गमन शब्द ज्ञानार्थक है क्योंकि सभी गत्यर्थक धातुएं ज्ञानार्थक होती हैं, इसलिये ज्ञान, सुखादि गुणों में सम्यक् रूप से विद्यमान रहनेवाला आत्मा है। अथवा शुभाशुभ रूप मन-वचन-काया के जो व्यापार हैं, उन्हें सम्पादित कर यथासंभव तीव्र या मन्द रूप से जो वर्तता है, वह आत्मा है। प्रकारान्तर से यों भी कहा जा सकता है कि उत्पाद-व्यय और ध्रौव्यइन तीनों द्वारा जो परिपूर्ण विद्यमान है वह आत्मा है। शंकराचार्य ने कठोपनिषद् के आधार पर 'आत्मा' शब्द पर लिखा है यदाप्नोति यदादत्ते विषयान्निह।। यच्चास्यः सन्ततो भावस्तस्मादात्मेति कीर्त्यते।। अर्थात् आत्मा वही है जो सब जगह व्याप्त है। सबको अपने में धारण करता है। विषयों का उपभोक्ता है तथा निरंतर जिसकी सत्ता विद्यमान रहती है। यहां पर 'आप्M व्याप्तौ' आङ् उपसर्गपूर्वक ‘दाञ् दाने', 'अद्-भक्षणे' एवं 'अतः सातत्य गमने' आदि चार धातुओं से आत्मा शब्द की सिद्धि मानी है। मा हा - जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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