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________________ नहीं था यह केवल सत्य की अनभिज्ञता है। तत्कालीन मतवादों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि उस समय भी आत्मा के सम्बन्ध में विभिन्न धारणाएं थी-कोई क्षणिक मानता था तो कोई कूटस्थ नित्य। कोई अणु मानता था तो कोई विभु। उन विचारधाराओं को तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं १. उपनिषद् का ब्रह्मवाद। २. बुद्ध का अनात्मवाद। ३. जैनों का आत्मवाद। जैन आत्मवाद सबके बीच समन्वय सेतु बना। आत्मा निगूढ तत्त्व है। अनेक अन्वेषणों, जिज्ञासाओं, विमर्शणाओं, और समीक्षाओं के बाद भी 'आत्मा क्या है?' यह प्रश्न समाहित नहीं हो सका। विश्व-संरचना के मूल घटकों में आत्मा का स्थान पहला है। __ प्लेटो दर्शन में निश्रेयस् प्रत्यय की प्रधानता है। एरिस्टाटल दर्शन में द्रव्य एवं आकार तथा हेगल एवं ब्रेडले ने निरपेक्ष प्रत्यय को सर्वोपरि महत्त्व दिया। भारतीय दर्शन में मुख्यता आत्मा की है। आत्मा क्या है ? चेतनामय असंख्य प्रदेशों का एक पिण्ड है। फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक देकार्त ने आत्मा का व्यावर्तक गुण चिन्तन शक्ति या सोचना माना था.। इसके विपरीत भौतिक द्रव्य का व्यावर्तक गुण विस्तार है। उसने सिद्ध किया कि हमारी समस्त मनोदशाएं चिन्तन का ही रूप हैं। यूनानी दार्शनिक प्लेटो ने आत्मा में तीन शक्तियों का जिक्र किया है क्षुधा, आवेग और बुद्धि। प्लेटो और देकार्त-दोनों ही आत्मा असंख्य प्रदेशी आत्मा की धारणा सांसारिक जीवन के आधार पर बनाते हैं। भारतीय दर्शन में आत्मा के स्वरूप पर मोक्ष की दृष्टि से चिन्तन किया है। इसलिये आत्म तत्त्व प्रधान बन गया। AXO आत्मा की दार्शनिक पृष्ठभूमि : अस्तित्व का मूल्यांकन
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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