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________________ V== ) == E == El= AEE ||==== MEEEEEma EEEEEEN E = == = = = ==|||| VIII== A IM अर्थात् संपूर्ण लोक में असंख्य गोले हैं। असंख्य-असंख्य गोलों का एक समवाय निगोद कहलाता है। एक-एक गोले में अनन्त-अनन्त जीवों का अस्तित्व है। इसे अनादि निगोद भी कहते हैं। इस राशि में कोई विभाग नहीं। छोटे-बड़े का व्यवहार नहीं इसलिये इसे अव्यवहार राशि कहा जाता है। __दिगम्बर परम्परा में नित्य निगोद शब्द का प्रयोग करते हैं। अव्यवहार राशि ऐसा महासागर है। जिसका कहीं छोर नजर नहीं आता। अव्यवहार राशि से निकला हुआ जीव विभाग के क्षेत्र में आ जाने से व्यवहार राशि जीव कहा जाता है। अव्यवहार राशि जीवों में चेतना की एक किरण मात्र ही अनावृत होती है, उनके पास चिंतन, भाषा, कल्पना, स्मृति का कोई साधन नहीं। मात्र स्पर्श बोध अवश्य है। सहअस्तित्व का एक उदाहरण है। उन जीवों की श्वासनिःश्वास, जन्म-मरण आदि सभी क्रियाएं एक साथ और समान रूप से होती हैं। एक जीव मरता है तो साथ रहने वाले अनन्त जीवों का भी मरण हो जाता है। उत्पत्ति भी साथ होती है। एक निगोद शरीर में अनन्त जीवों का परिणमन कैसे होता है ? यह प्रश्न सहज हो सकता है। इसका समाधान एक उदाहरण से दिया जा सकता है। जैसे-अग्नि में प्रतप्त लोहे का गोला सम्पूर्ण अग्निमय बन जाता है। वैसे ही एक शरीर में अनन्त जीवों का परिणमन संभव है। निगोद के जीव सूक्ष्म और बादर दो प्रकार के होते हैं। सूक्ष्म संपूर्ण लोक में व्याप्त है। बादर निगोद के जीव भी इतने सूक्ष्म हैं कि चर्म चक्षुओं से देखे नहीं जाते। इन जीवों की अवगाहना धनांगुल के असंख्यातवें भाग या उससे भी सूक्ष्म होती है। __ आवागमन का प्रवाह इनमें निरंतर चलता रहता है। एक मुहूर्त में ६५५३६ बार जन्म-मरण कर लेते हैं। यह पता लगाना कठिन है कि कब पुराने जीवों का च्यवन होता है और कब नये जीवों की उत्पत्ति। इनका आकार आयत, चतुस्र और गोल होता है। आधुनिक विज्ञान ने भी सूक्ष्म जीवों को स्वीकृत किया है। उनके तीन प्रकार हैं-१. जीवाणु (Bacteria), २. विषाणु (Virous), ३. माइकोप्लाज्मा .१७८. जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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