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________________ लन्दन के प्रसिद्ध डॉ. डब्ल्यु जे. किल्लर ने अपनी पुस्तक 'द ह्युमन एटमोस्फीयर' में अनेक प्रयोगों का वर्णन किया है। वे प्रयोग मरणान्त मरीजों की जांच के समय किये थे। उनका निष्कर्ष यह है-'मानव देह में एक प्रकाश पुञ्ज है। उसका अस्तित्व मृत्यु के बाद यथावत् रहता है।' अब तक आत्मा के संदर्भ में विज्ञान द्वारा स्वीकृत महत्त्वपूर्ण तथ्य१. पूर्वजन्म है, पुनर्जन्म है। २. प्रोटोप्लाज्मा ही आत्मा है वह नष्ट नहीं होता। ३. भौतिक शरीर के भीतर कोई अदृश्य शक्ति है। सुकरात ने कहा- मृत्यु स्वप्नरहित निद्रा है और पुनर्जन्म जाग्रत लोक के दर्शन का द्वार है। जैन परम्परा में जन्म-मृत्यु, कर्म-पुनर्जन्म सम्बन्धी अवधारणाएं शरीर, कषाय, योग एवं लेश्या से जुड़ी हुई हैं। जिनके कारण भवान्तर का क्रम निरंतर चालू है। शरीर है तो पुनर्जन्म है। पुनर्जन्म का मूल कर्म है। शरीर से आत्मा की विभक्ति ही पुनर्जन्म की प्रक्रिया का निरोध है। जब तक स्थूल और सूक्ष्म दोनों शरीरों का अस्तित्व है वहां तक चारों गतियों का अस्तित्व भी सुरक्षित है। लेश्या और पुनर्जन्म जीव मरकर नरक आदि गतियों में क्यों जाता है ? कारण क्या है ? कारण मीमांसा करें तो लेश्या भी उसमें एक घटक है। लेश्या-सिद्धांत जीव की उत्पत्ति तिर्वच गति से ही जुड़ा हुआ नहीं, मृत्यु के साथ भी उसका गहरा सम्बन्ध ता मनुष्य गति नरक गति जीव मृत्यु के समय जिस लेश्या के पुद्गलों को ग्रहण करता है, मृत्यु के बाद वैसी ही लेश्या में जाकर उत्पन्न होता है। या यों कहें कि जीव को जिस योनि में जाना है। मरण काल में वैसी ही लेश्या प्राप्त हो जाती है। पुनर्जन्म : अवधारणा और आधार
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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