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________________ क्रोमोसोम यानी गुणसूत्र की रचना D.N.A तथा R.N.A. नामक रसायनों से होती है। इन गुणसूत्रों पर जीन्स स्थित होते हैं। कोशिका के केन्द्रक के चारों ओर एक जीवद्रव होता है जिसे 'प्रोटोप्लाज्मा' कहते हैं। अब हम 'क्लोन' और कर्म-सिद्धांत पर गहराई से चिन्तन करेंगे कि दोनों में कहां विसंगति है, कहां संगति है ? वैज्ञानिकों का कहना है कि 'क्लोन' किसी जीव या डोनर पेरेन्ट (Donor Parent) का अंश नहीं है। दोनों का अस्तित्व अलग-अलग है। शरीरशास्त्र के अनुसार प्रत्येक कोशिका अपने आप में स्वतंत्र जीव है। जब प्रत्येक कोशिका का अलग अस्तित्व है तो उससे निर्मित भ्रूण और भ्रूण से निर्मित क्लोन डोनर पेरेन्ट का अंश कैसे हो सकता है? क्लोन उससे बिल्कुल अलग है। उसका आयुष्य, उसकी भावनाएं तथा उसका सुख-दुःख भी बिल्कुल भिन्न होते हैं। यह बात डौली के गर्भधारण से तथा माता बनने से अधिक स्पष्ट हो गई। विज्ञान की मान्यता है कि मनुष्य का भी क्लोन तैयार किया जा सकता है। मान लें मनुष्य के दो क्लोन तैयार किये। दोनों की शक्ल-सूरत एक जैसी है किन्तु दोनों को भिन्न-भिन्न वातावरण तथा खान-पान मिला तो व्यक्त्विनिर्माण में अंतर आ जायेगा। विकास अलग-अलग होगा। कभी-कभी एक जैसा वातावरण और अनुकूलताएं मिलने पर भी व्यक्त्वि में अंतर हो जाता है। जैसे किसी के दो जुड़वां बच्चे पैदा हुए हैं। शान-शक्ल एक-सी है फिर भी आगे जाकर एक विद्वान बन जाता है एक निरक्षर रह जाता है। अक्सर यह देखा जाता है। दूसरा प्रश्न जन्म के प्रकार से है कि बिना नर के संयोग से जीव पैदा किया जा सकता है किन्तु डोनर पेरेन्ट नर है तो क्लोन नर होगा। मादा है तो क्लोन भी मादा होगा। क्लोन को मादा के गर्भ में रखा जाता है, वहीं बच्चे का विकास होता है। गर्भकाल पूरा होने पर ही बच्चा पैदा होता है। गर्भ की प्रक्रिया बराबर होती है। अतः शास्त्रों में वर्णित गर्भ की प्रक्रिया में विसंगति नहीं आती। नामकर्म के सम्बन्ध में यह प्रश्न है कि इच्छित शान-सूरत बनाने पर नामकर्म का महत्त्व क्या रहेगा? प्रश्न महत्त्वपूर्ण है। .१२८ - जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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