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________________ होता है। उन प्रकंपनों में बाहरी पौद्गलिक धाराएं मिलकर अपनी क्रियाप्रतिक्रिया द्वारा परिवर्तन करती रहती हैं। क्रियात्मक शक्ति जनित प्रकंपनों के माध्यम से होने वाला आत्मा और कर्म पुद्गलों का संयोग ही बंधन है । कर्म की कर्ता आत्मा है या कर्म ? यह प्रश्न है। शास्त्रकार ने प्रश्न को उत्तरित करते हुए कहा-कर्म की कर्ता आत्मा है। आचार्य कुंदकुंद की अवधारणा में कर्म का कर्ता कर्म ही है। दो दृष्टिकोण हैं, दोनों सापेक्ष हैं। इनमें तात्पर्य भेद नहीं है। अभेद दृष्टि से देखने पर आत्मा कर्म की कर्ता है। भेद दृष्टि से कर्म कर्म का जनक है। यदि मूल आत्मा को कर्ता माना जाये तो वह अकर्ता नहीं हो सकती। कर्म का मूल है- कषाय । कषाय चेतना की परिणति पुद्गल मिश्रित है । सजातीय सजातीय को आकर्षित करता है । कषाय आत्मा का ही एक पर्याय है । आत्मा और कर्म के सम्बन्ध की समस्या जैन दार्शनिकों के समक्ष उपस्थित हुई। उन्होंने कहा- बंधन का कारण आत्मा नहीं, पारमार्थिक दृष्टि से आत्मा स्वयं बंधन में नहीं आती । कुम्हार, चाक आदि निमित्तों के अभाव में मिट्टी स्वयं घट का निर्माण नहीं करती। वैसे ही आत्मा बाह्य निमित्त के बिना ऐसी कोई क्रिया नहीं करती जो बंधन की हेतु बने । क्रोधादि कषाय, राग-द्वेष प्रभृति बंधक मनोवृत्तियां भी स्वतः उत्पन्न नहीं होतीं, जब तक ये कर्म वर्गणाओं के विपाक रूप में चेतना के समक्ष उपस्थित न हो जायें। कर्म जगत बहुत विशाल और सूक्ष्म है। कर्म परमाणुओं से असंख्य दुनिया पूरित की जा सकती है। शरीर का निर्माण ६०० खरब कोशिकाओं द्वारा माना जाता है। प्रति सैकण्ड ५ करोड़ कोशिकाएं और प्रति मिनट ३ खरब कोशिकाओं का उत्पन्न - विनाश होता है। कोशिका सूक्ष्म है। कर्म शरीर इससे भी सूक्ष्म है। विज्ञान द्रव्य के छोटे-छोटे टुकड़ों को स्कंध (Molecule) कहते हैं। स्कंध में द्रव्य के सारे गुण विद्यमान हैं। स्कंध को और अधिक छोटी इकाइयों में विभक्त किया जाये तो इतने स्कंध होते हैं। जर्मन प्रोफेसर एण्ड्रेड (Andreade) ने लिखा- आधी छटांक जल के स्कंधों की संख्या इतनी अधिक है, यदि तीन अरब व्यक्ति एक सैकण्ड में पांच के अनुपात से गणना करें तो ४० वर्ष लग सकते हैं। एक परमाणु प्रोटोन (Proton) और इलेक्ट्रोन (Electron ) से निर्मित है। एक परमाणु में कई प्रोटोन, कई इलेक्ट्रोन होते हैं। संसार का सबसे छोटा बारह
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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