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________________ २१. जेठां ऊभी माळियै रे, मगन गया अति दूर। रूपचन्दजी जा खड्या रे, बाहिर रूस सनूर ।। २२. नहीं जरूरत जाण री रे, डालिम दया अगाध । नहीं 'रूप' रहसी नहीं रे, ओ विवेक अविबाध ।। २३. गुप्त लेख लिख खाम में रे, पूठे धर्यो प्रछन्न। पूठो निज निजऱ्या ठव्यो रे, सन्त रह्या सब सन्न।। 'सुजनां! श्री कालूव्याख्यान ध्यान धरि सांभळो रे लोय। २४. सुजनां! जाणे जाणणहार और क्यूं ओळखै रे लोय। सुजनां! प्राज्ञाप्राज्ञ प्रकार प्राज्ञजन ओ अवै २ लोय।। २५. सुजनां! जोड़ी श्रमणसमाज सांझ गणनाहलो रे लोय। सुजनां! आखै मनु आवाज गाज वर्षाहलो रे लोय।। २६. सुजनां! आज एक एकत्र पत्र मैं लिख दियो रे लोय। सुजनां! युवाचार्य रो तत्र नाम अंकित कियो रे लोय।। सफल दिन आज रो रे, २७. किणरो? जिज्ञासा जगी रे, दाखै डालिम देव। गुरुकुलवासी है जिता रे, छांट लियो स्वयमेव।। २८. ओ रहस्य किण ही कनै रे, प्रगट न करणो रोक। युवपद-पत्र लिख्यो सही रे, इण में रोक न टोक।। २६. भारी चेष्टावां हुई रे, पण नहिं पाई रेस। कुण युवपदधारी हुसी रे, रूप रंग सविशेष।। ३०. पांच मिनट पिण पाखती रे, बिठा नहीं दी सीख। प्रगट काम नहिं सूंपियो रे, जाणक मन में तीख।। ३१. शक्तमल्ल! तूं बांचज्ये रे, राते रामचरित्र। पिण कालू नै नां कह्यो रे, ओ कोई चित्र विचित्र।। ३२. कुरब-कायदो है बढ्यो रे, जिण-जिण रो विख्यात। तिण में अंतर क्यूं पड़े रे, सुणो मगनजी! बात।। १. लय : भविकां! मिथुन उपर दृष्टान्त २. लय : कीड़ी चाली सासरै रे उ.१, ढा.१० / ८६
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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