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________________ ढाळः ७. दोहा १. माणक गणिवर पट्ट पर, अणदीठे गणधार । तेरापंथ समाज में, भारी बण्यो विचार।। २. गच्छ गच्छनायक बिना, रहै न रच्छित रूप। यथा दच्छ वनपाल बिन, उपवन बणै विरूप।। ३. एक छेक गण-ईश स्यूं, शोभै सकल समाज । गगनांगण विकसित करै, उदित एक उडुराज।। ४. बिन प्रचण्ड मार्तण्ड ज्यूं, तिमिरित निखिल जहान। त्यूं गुणज्ञ गणपति बिना, शासन-प्रभा पिछान।। ५. तिण कारण सहसा मिलै, गणविभु बट्टै उमंग। परामर्श मिलकर करै, चतुर चतुर्विध संघ।। ६. चवदै मुनि चउमास में रे, सुजानगढ सुविचार। रत्नाधिक मुनि भीम री रे, अनुमति निज सिर धार। अनुमति निज सिर धार हृदय स्यूं, सारा काम करै इक लय स्यूं, गतिविधि चालै अभय विनय स्यूं, नहिं विचलित संशय स्यूं भय स्यूं।। जी! गच्छेश्वरजी हो...! ७. प्रथम याम व्याख्यान को रे, काम करै मुनि मग्न। कालू गण-संभार में रे, निशिदिन सहज निमग्न । निशिदिन सहज निमग्न निराळो, नहिं बहु बात-विगत रो ढाळो, राखै पग-पग पाप रो टाळो, करसी क्षण में गण-उजवाळो।। ८. प्रसरी देश-प्रदेश में रे, विस्तृत आ आवाज। तेरापंथ समाज में रे, नहिं कोई नायक आज। नहिं कोई नायक आज विराजै, बिन नायक नहिं गण-छवि छाजै, १. लय : पुण्य सार सुख भोगवै रे उ.१, ढा.७ / ७७
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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