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________________ नया संस्करण : नया परिवेश आचार्यश्री तुलसी की काव्यकृतियों में शीर्षस्थ कृति है ‘कालूयशोक्लिास' । इसमें पूज्य कालूगणी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व को जिस रूप में उजागर किया गया है, वह कृतज्ञता-ज्ञापन का एक अद्भुत उदाहरण है। इस काव्य का शब्दशिल्पन विशिष्ट है अथवा भावबोध? इस प्रश्न को उत्तरित करना आसान नहीं है। प्रस्तुत काव्य की भाषा, भाव और शैली, तीनों में अपनी वरीयता स्थापित करने की प्रतिस्पर्धा-सी प्रतीत हो रही है। आचार्यपद का दायित्व संभालने के बाद प्रथम तीन वर्ष अपनी कार्यक्षमता और अनुभव सम्पदा की श्रीवृद्धि में नियोजित कर आचार्यश्री ने सृजनयात्रा प्रारंभ की। चार वर्षों के पुरुषार्थ की प्रतिकृति प्रस्तुत काव्यकृति आचार्यश्री की नैसर्गिक सृजनशीलता का जीवन्त साक्ष्य है। वह युग मुद्रण की सुविधा का नहीं था और हमारे धर्मसंघ में मुद्रण की प्रवृत्ति भी नहीं थी। फलतः तीन दशकों तक कालूयशोविलास संघ के ग्रन्थ-भंडार की शोभा बढ़ाता रहा। पर इसकी हस्तलिखित प्रतियां प्रचुर मात्रा में तैयार हो गईं और काव्य-रसिक साधु-साध्वियों द्वारा प्रवचन में उनका उपयोग भी होता रहा। कालूयशोविलास की रचना के तीन दशक बाद इसके सम्पादन का प्रसंग उपस्थित हुआ। उस अवसर पर आचार्यश्री ने दिल खोलकर इसका परिष्कार किया और एक प्रकार से इसे नया स्वरूप प्रदान कर दिया। ‘कालू-जन्म-शताब्दी' के ऐतिहासिक अवसर पर कालूयशोविलास का प्रकाशन हुआ। काव्यरसिक, इतिहास के अनुसन्धाता और स्वाध्यायप्रेमी पाठकों को एक नया उपहार मिल गया। कालूयशोविलास एक जीवनचरित्र है, फिर भी साधारण पाठकों के लिए सहज बोधगम्य नहीं है। इसके कतिपय स्थल तो इतने वैदुष्यपूर्ण हैं कि उन्हें पढ़ते-पढ़ते प्रबुद्ध वर्ग की मति चकरा जाती है। यदि वाचक अध्यवसायी, अनुभवी और रागिनियों का जानकार हो तो श्रोताओं को दीर्घकाल तक बांधकर रख सकता ५० / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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