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________________ छह मास का वह समय मुनि सोहनलालजी के लिए कसौटी का समय था, जिसमें वे खरे उतरे। उस अवधि में उन्होंने जिस शालीनता और संघभक्ति का परिचय दिया, वह अपने आप में बेजोड़ है। ऐसे उदाहरण धर्मसंघ के इतिहास में उल्लेखनीय बन जाते हैं। १००. भैरूंदानजी चौपड़ा के संबंध में आचार्यश्री द्वारा कथित दोहे १. पुण्याई रो पूतलो, भागी भैरूंदान। ____ मुकुट चौपड़ा-वंश रो, शासण में सम्मान ।। २. परम भगत गुरुदेव रो, सब भायां में ज्येष्ठ। काछ वाच रो साचलो, है स्वभाव रो श्रेष्ठ।। १०१. गंगाशहर के श्रावकों के सम्बन्ध में आचार्यश्री तुलसी के द्वारा रचित दोहे१. लूणावत बो देवजी, सेठी किशन दलाल। पृथ्वी', भैरव' प्रेरणा, कीन्हो काम कमाल।। २. जंगल में मंगल हुयो, बीकायत रो भाग। तेरापंथ-प्रभावना, खिल्यो चोखलो बाग।। ३. गंगाणै रा चौपड़ा, देश-प्रदेशां ख्यात। शासण-गौरव-वृद्धि में, सदा बढ़ायो हाथ ।। १ सेठिया २ मुनि पृथ्वीराजजी ३ भैरूंदानजी चौपड़ा १०२. प्रस्तुत पंक्ति में 'सिद्ध' शब्द श्लेष अलंकार में प्रयुक्त है। सिद्ध सर्वज्ञ होते हैं। उनसे कोई भी रहस्य अज्ञात नहीं होता। यहां 'सिद्ध' जाति का वाचक है। नेमनाथजी सिद्ध सिद्धांत के अच्छे जानकार थे। उनके सामने असंगत उत्तर टिक नहीं सकता था, इसलिए चर्चा का प्रसंग समाप्त कर दिया गया। १०३. बत्तीस आगमों के प्रामाण्य का आधार है द्वादशांगी। जिन शास्त्रों की बातें द्वादशांगी से विपरीत जाती हैं, उनका प्रामाण्य संदिग्ध होता है। महानिशीथ आदि के संबंध में तो उसके संकलनकार ने स्पष्ट लिखा है कि जिन स्थलों पर पदानुरूप सूत्रालापक प्राप्त नहीं हुए, वहां श्रुतधरों ने अपने चिंतन के अनुसार उचित पदों का संकलन किया है। शासन देवी द्वारा प्राप्त इसकी मूल प्रति वर्तमान में खंडित है तथा उदेई के जंतुओं द्वारा भी कई पन्ने विकृत कर दिए गए हैं। इसलिए इसमें जहां कभी भी कुलिखित-विसंगत तथ्य हैं, पाठक उसका दोष मुझे न दें। ३१० / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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