SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४. राजाणे गंगाण स्यूं, आई स्पेशल ट्रेन। भैरूंदानजी चौपड़ा, की आ सारी देन'।। १५. करै खड्या सब प्रार्थना, सित्यासिय चउमास। गंगाशहर करो गुरु! फळे हमारी आश' ।। *म्हारा पूज्य परम गुरु! प्यारा लागो जी। १६. राजलदेसर स्यूं मजलो-मजले विचरता, मर्यादोत्सव छंय्यासी रो सोल्लास। मंड्यो मोटै मंडाणे दुर्ग सुजाण में, सारै संवत्सर रो ओ अवसर खास ।। सोरठा १७. अगवाणी रिखिराम, अपथापी अक्खड़पणै। बह ज्यातो कहिं वाम, अहंवृत्ति आखिर बुरी।। गीतक छंद १८. लाडणूं व्याख्यान में इक बार दुस्साहस कियो, स्पष्ट संघ-परम्परा-प्रतिकूल संभाषण दियो । तुरत श्रावक-तर्कणा, अभिमान-वश मानी नहीं, सुगुरु पे पहुंची शिकायत, संघ-मर्यादा सही।। १६. डायमलजी नाहटा गुरु-चरण में आ वीनवै, गढ़ सुजान सुजान-शेखर सुगुरु स्खलना अनुभवै। दूसरै दिन आवतां ही पूछियो रिखिराम नै, कड़ो ओळम्भो रु प्राश्चित दियो सब रै सामनै ।। २०. संघपति री अनुज्ञा करणी पड़ी स्वीकार है, भिक्षुशासन-पद्धती अविकार है सुविचार है। १. देखें प. १ सं. १०० २. देखें प. १ सं. १०१ ३. चंदन चोक्यां में सरस बखाण ४. संघीय-परंपरा के विरुद्ध मूर्ति-पूजा संबंधी बात कही गई। उ.३, ढा.१२ / २२७
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy