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________________ ओ गुरुवर है श्री जिनवर री देण, या आरो चौथो ओस जी, म्हांरा राज ।। ३६. जोयो जग में पग-पग पंचम काल, तिण लगभग बीजो बोलियो जी, म्हांरा राज । रे भाई ! भिक्षूशासण रो भाल, नित क्षेत्र विदेहे तोलियो जी, म्हांरा राज ।। ४०. अपणे गण में शाश्वत चौथो आर, इण में सन्देह न आणिये जी, म्हांरा राज । यूं जन-जन-मुख मुखरित हृदयोद्गार, सब पूज्य प्रभाव पिछाणिये जी, म्हांरा राज ।। ४१. भारी कीन्हो गणधारी उपकार, सरदारशहर जनता तरी जी, म्हांरा राज । तीजे उल्ल ग्यारहवीं ढ़ार, नव भाव-भंगिमा स्यूं भरी जी, म्हांरा राज ।। ढाळ: १२. दोहा १. एक सफर में सुगुरुवर, कियो अनोखो काम । एक वृष्टि उत्कृष्टि ज्यूं, निखिल निवारै घाम ।। २. बिलबिलता संतप्त दिल, किंकर्तव्यविमूढ़ | ग्राम-ग्राम जन स्वाम री, करै प्रतीक्षा गूढ़ ।। ३. डगमग डोलत जो मनुज, दृग-दौलत लखि पूज । दिल अडोल तिरो हुयो, मन री मिटी अमूज । । ४. संशय सब शयनालये, गया शयन-हित शांत । भर्मी दृढ़धर्मी हुया, हळुकर्मी अभ्रान्त ।। ५. दान दया री अनुभवी, भवी धारणा नव्य । भव्य भाव स्यूं सभ्यजन, समझ्या निज कर्तव्य ।। ६. वेषधरा दर्वीकरा, समकित जीवन- हेत । श्वेत-चेत जाण्यो सही, ७. गुण-गोरो दोरो हुयो, जोरो-तोरो कोरो यदि वर्णन करूं, ग्रन्थ भरूं सव्यास ।। शासनेश-संकेत ।। खास । उ.३, ढा.११, १२ / २२५
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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