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३. स्वामी समझावै सहज, तीरथ प्रवचन खात। __ वर्ष एकविंशति सहस, चलै भगवती भास ।। ४. संघ-चतुष्टय रूप जो, तीरथ कहिये प्राय। ___ तिणरो तो लेखो नहीं, देखो न्याय मिलाय।। ५. इत्यादिक उत्तर दिया, आगम-युक्ति-सुयुक्त।
पिण आभ्यन्तर रोग जो, मिटै न तन्त्र-प्रयुक्त।। ६. सप्तबीस दिवसां लगे, जम्यो सजोरो झण्ड।
राजलदेसर में रज्यो, पूज्य-प्रताप प्रचण्ड।। ७. श्री गुरु-चरणांगुष्ठ में, व्रण-वेदन-उद्भाव।
मासाधिक तिण कारणे, रहणो हुयो स्वभाव।।
'मुनि महिमागारा।
मौलिक गुण स्यूं इकसारा रे, मुनि महिमागारा। उत्तर गुण न्यारा-न्यारा रे, मुनि महिमागारा। स्याद्वाद सिद्ध करणारा रे, मुनि महिमागारा। भैक्षव-गण रा रखवारा रे, मुनि महिमागारा। कालू गुरु-कर निज शिर धारी, भारी हिम्मतवारा रे।।
८. अवसर वर गुरुदेव विचारी, श्रमण-सती सिंघाड़ा रे। मुनि महिमागारा।
ग्राम-ग्राम आयाम सफर पर, विचराया परबारा रे।। मुनि महिमागारा। ६. विद्याध्ययन शयन तज कर-कर, भर-भर ज्ञानपिटारा रे।
समय-सार कंठस्थ धार, गुरु-सेव करी इकधारा रे।। १०. संस्कृत भाषा दूध-पतासा ज्यूं की एकाकारा रे।
प्राकृत-पाठी शठता नाठी, लाठी स्यूं फणिदारा रे।। ११. चर्चावादी सुण प्रतिवादी, आधी रात जगारा रे।
कर शास्त्रार्थ यथार्थ घुरावै, घम-घम जीत-नगारा रे।। १२. व्याख्यानामृत वर्षण स्यूं, आकर्षण लोक हजारां रे।
विध-विध विषय-विशारद-रंजन भंजन भ्रम भवियां रा रे।। १३. रम्याकार मार-मद मोच्यो, लोच्यो शिर बहु वारां रे।
रग-रग रोच्यो गुरु शिक्षा-रस, जग जस री मनुहारां रे।।
१. लय : दुलजी छोटो-सो
उ.३, ढा.६ / २१५