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________________ २३. बोलै तब भगवानदास जी, सुणी सुगुरु फरमाणी । म्है पहचाणी अक्षर-अक्षर, सत्य पूज्य री वाणी ।। २४. बिन कारण जगतारण कालू, सिद्ध कियो संभोग 1 1 वदो विनायक वायक दूजी, लायक जोग विलोग । । २५. थी जिज्ञासा जिगरी खासा, उत्तर तिण रो आयो । आशातीत खुलासा सुण-सुण, म्हांरो दिल उलसायो । । २६. वदै वदनमल अबै बांठियो, बीकाणै रो वासी । जैतत्व नै थों क्या जाणो ? गहन बात आ खासी ।। २७. भणै भास भगवानदास यूं, हम सच्चों के साझी । नहिं अन्यायी के अनुयायी, राजी हो बेराजी ? २८. तेरापंथ-महंत पूज्य री, विजय - दुंदुभि हम तो ऐसी बात कहेंगे, राजी हो २६. सभा-सभासद स्व-पर-दर्शणी, चित्रित - चित आलोचै । चरचा चरचा सदा चरचता, मौन खड्या कांइ सोचै ? बाजी । बेराजी ।। 'छोड़ो टेक कुपथ री ३०. पोणी दो घंटां सुधी, प्रतिवादी हो ऊभा गुरु पास क । मौन धार मारग लियो, नहिं कीन्हो हो प्रत्युत्तर खास क ।। ३१. माघमहोत्सव मास री, चूरू पर हो की महर महान क । ढाळ आठवीं ठाट स्यूं, सुणो बांचो हो चर्चा आख्यान क ।। ढाळः ६. दोहा १. रतनदुरग शासणसुभग, पादार्पण शुभ याम । तीरथहित चरचा तदा, चाली अति आयाम ।। २. दूगड़ पुर सरदार रा, प्रतिपख- प्रेरक भाल । पूछे तीरथ वीर रो, चलसी कितैक काल ? १. लय : नींदड़ली हो वैरण २. पूसराजजी दूगड़ २१४ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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