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________________ 'सुणो सुणो रे सुजाण! चूरू री चरचा। .. ३६. उत्कंधर तब उच्चरै रे, प्रतिपक्षी आवाज। प्रकटी लोचन-लालिमा रे, अंग अरुणिमा साझ।। ३७. उत्तर लेना है हमें रे, देने का क्या काम? बीत चला है बात में रे, व्यर्थ हि समय प्रकाम।। ३८. जो अपनी इच्छा कहो रे, हां नां में इक बात। गुरु का हुक्म नहीं हमें रे, हो विलम्ब व्याघात।। लावणी छंद चुरू री चरचा चतुर! सुणो चित ल्याई। अष्टम पट्टाधिप री पेखो पुन्याई ।। ३६. सुण बोलै तब भगवानदास द्विज जाती, लख प्रतिपख-आंख्यां खून-बून बरसाती। ऐ लाल गणेशी! लाल आंख क्यों करते? तुम भी बोलो क्यों उत्तेजित हो डरते? सुणतां ही मानो शीतलताई छाई ।। ४०. लम्बोदरजी अब लवै जु लहुता ठाणी, म्है पाठ दिखायो पहल प्रेरणा जाणी। अब सदा बिना कारण लै अन्न रु पाणी, बै करै प्रमाणित क्यूं है ताणाताणी? केवल ओ कहणो और नहीं अरुणाई ।। सुणो सुणो रे सुजाण! चूरू री चरचा। ४१. विनवै देख विनम्रता रे, क्षिप्र विप्र भगवान। पूज्य पाठ फरमाविये रे, करुणा करी महान।। ४२. तीजे उल्लासे कही रे, सरल सातवीं ढाळ। - सिद्ध करै संभोग नै अब, कालू पूज्य कृपाल ।। १, २. लय : तूं तो आज्या ए नींद उ.३, ढा.७ / २११
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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