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________________ शार्दूलविक्रीडित-वृत्तम् प्रातः पक्ष्यपि यस्य गायति नुतिं ह्यत्युर्जितैः कूजितैः, नानाकाव्यकलापकैरिह यशो ढक्कामिषं ढौकते। कीर्तिर्नृत्यति नर्तकीव नितरां जिह्वांगणे सद्धियां, तद्वृत्ते तुलसीकृते सुललितोल्लासे द्वितीयोऽगमत् ।। प्रातःकाल पक्षी भी अपने उच्च स्वरों (कलरव) से जिनकी स्तुति करते हैं, विविध काव्य-कलापों के माध्यम से जिनका यशं दुन्दुभि बन रहा है, जिनकी कीर्ति सुधी-जनों की रसना पर सदा नर्तन करती रहती है, उन कालूगणी के जीवन-वृत्त में, जो कि आचार्य तुलसी द्वारा रचित है, यह सुललित दूसरा उल्लास सम्पन्नता पर है। उपसंहतिः आचार्य-तुलसी-विरचिते श्री-श्री-कालूयशोविलासे १. जर्मन-विषय-वास्तव्य-भव्य-हर्मन-जेकोब्यागमन-विविध-सार्वज्ञ-श्रुत-विषय मन्थन-पूर्वक-मनन... २. मेदपाट-मरुस्थल-राजधन्यां श्री-शासन-शिरोमणेर्युगल-चतुर्मास-पर्यन्तं सुखपूर्वक-निवसन... ३. आशुकविरत्नायुर्वेदाचार्य-पंडित-रघुनन्दन-मिलन-पूज्यपादाम्बुज- भृगायमाणेन स्वजीवन-समर्पण... ४. हरियाणा-प्रवेशे भिवानी-चतुर्मासे भीषण-दीक्षा-प्रतिपक्षाविर्भाव-प्रतिकूल-पवन प्रेरित-विदभ्राभ्रवत् तिरोभवन... ५. बीकायतं धर्मायतं कर्तुं स्व-शिष्य-परिवृत-पादार्पण-भीनासर-शास्त्रार्थ- सहज विजयश्री-वरण... ६. १६७० वर्षाद् बीदासर-चतुर्मासादारभ्य १६७८ वर्षपर्यन्तं बहुसुकुमार-कुमार कान्त-कान्ता-भव-भ्रान्ति-वैरक्त्यपूर्वकगुर्वह्रि-सरोरुह-राजहंसत्व-स्वीकारणेन श्रमण-संघ-विकास-रूपाभिः षड्भिः कलाभिः समर्थितः षोडशगीतिकाभिः सन्दृब्धः समाप्तोऽयं द्वितीयोल्लासः। १७४ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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