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________________ ११. साहिब नै समझ्यो सुणी रे, तुरत विरोधी लोग। मिलजुल आया जोश में रे, साझै पुनरुद्योग रे।। १२. देखी नै इक पुस्तिका रे, गुरु पूछे तत्काल। आ पुस्तक किण री रची रे? उत्तर दै वाचाल रे।। १३. खंडन 'तेराद्वार'१ रो रे, कीन्हो मम गुरुराज। ___ अक्षर-अक्षर मान्य है रे, इण पुस्तक रो राज! रे।। १४. क्षण इक झांकी पुस्तिका रे, फरमावै गुरुदेव। जीव नाम इण में लिख्या रे, दोय बीस स्वयमेव रे।। १५. सिद्ध नहीं सिद्धांत स्यूं रे, प्रतिपख वदै सनेह । साच हमारी पुस्तिका रे, नहिं इण में संदेह रे।। १६. नव पदार्थ री जोड़ में रे, भीखणजी तेबीस। नाम कह्या ते नहिं मिलै रे, देखो समय अधीश! रे।। दुमिला छंद १७. तब पूज्य करै फरमान अरे! अनजान तुं तान करे मत नां, भगवान की आन महान गिणी, जिय ते धिक जान करी जतना। अनुमान प्रमान विधान शिगे, जिन- पिछान रची रचना, उगलै दिशि पच्छिम भान भल, न मिलै क्षति भीखन के वचनां।। १८. शिव-थाह कि राह विदाह करी, निज बांह लुकाह सुराह-मना, इक नाह सिवाह अहा! वाह-वाह, करी परवाह न एक अना। दिल में विसवाह अथाह हमें, हम पन्थ-पनाह यथाह भना, उगलै दिशि पच्छिम भान भलै, न मिलै क्षति भीखन के वचनां।। १६. कही-सुणी मानै नहीं रे, ताणै अपनी रूढ़। सानै-वानै जो लखै रे, क्यूं कहिवावै मूढ़ रे।। २०. सूत्र भगवती भगवती रे, काढ़ी करुणानाथ। जीव नाम री आमना रे, निसुणै सारो साथ रे।। २१. एक-एक गिणती कर्यां रे, नाम हुया तेबीस। कठै छिपावै जा अबै रे, पृच्छकजी निज शीष रे।। . . १. जैन सिद्धांत से संबंधित एक लघु संकलन। २. लय : साधु श्रावक व्रत पालनै रे ३. भगवई श. २०१७ उ.२, ढा.५ / १२६
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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