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________________ हां रे कहि चौथी ढाळ सुगुरुवर कीरति बखाण जोकरतां म्हारै कर री लेखण नहीं रुकै रे लोय।। ढाळः ५. दोहा १. मासकल्प वर कल्पतरु, गंगापुर गणमोड़ रही, पंथ पहुने बही, पहुंच्या गढ़ चित्तौड़।। २. कांटा रो साहिब' जठै, आंटो हो अनपार। ___ लोक विरोधी भ्रांतचित, बहकायो बहु बार।। ३. आयो स्वामी रै निकट, विकट समस्या हेत। प्रभुवर समझावै प्रगट, सार्व-समय-संकेत।। ४. तिण बिच इक मानव त्वरित, दानव रो मन दास। साहिब पास उदास मुख, वदै वचन अविमास ।। ५. गउ-बाड़े आगी जलै, तेरापंथी लोग। खोलै या खोलै नहीं? ओ है प्रश्न अमोघ ।। ६. बोलै अम्बालालजी' कावड़िया तिण ठाम। __ लै उत्तर इण प्रश्न रो, मैं यूं तुरत निशाम।। ७. तूं थारै निज गेह में दियासलाई दाग। देखी म्है आवां क नहिं सकल बुझावण आग।। ८. व्यर्थ वितण्डावाद में, साधू रो के काम। हुयो निरुत्तर निम्नमुख, गयो अबोलो गाम।। *गुरु-गरिमा भारी, ६. साहिब नै समझावियो रे, गणभूषण क्षण मांह। रग-रग में जिणरै रुची रे, तेरापथ री राह रे।। १०. बालिश-वच-विष व्यापियो रे, सारै अंग सजोर। गुरुवच विष-भैषज्य स्यूं रे, सज्ज हुयो तिण ठोर रे।। १. अफीम तोलने के कांटे का अफसर । २. मंदिर का पुजारी, जिसे पांच सेर घी देने का प्रलोभन देकर भेजा गया। ३. उदयपुर-निवासी, ये दानवीर भामाशाह के इक्कीसवीं पीढ़ी के वंशज थे। ४. लय : साधु श्रावक व्रत पालनै रे १२८ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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