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________________ आषाढ़ शुक्ल दसमी दिन संयम धार्यो, छगनां बोरावड़-वासिणि जन्म सुधार्यो। चरमोत्सव पट्टोत्सव री छटा अटारी, पहले उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री। सोरठा ११. चरमोत्सव मध्यान, च्यार तीरथ रै सामनै। मगन मुनी मतिमान, शेष काम बगसीस ली'।। लावणी छंद १२. अमरू आसोज कृष्ण में दीक्षा लीनी, सुद कार्तिक में झमकू वेरागे भीनी। रुकमा कोटासर गिरिगढ़-वासिणि हीरां, कार्तिक सुद तेरस संयम लियो सधीरां । चूरू हो वसुगढ़' वसुपट-वासव आया, मूलां दवेर री दाखां संयम पाया। सड़सठ्ठ मोच्छब धरती राजाणा री, पहले उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। १३. वासी बरार रो सेंसमल्ल लहुवंशी, माह सित आठम ली दीक्षा परम प्रशंसी। सित चवदस सोनां कन्या असोतरा री, बीदासर छापर चाड़वास दृग डारी। अब सुजानगढ़ वैशाख सुदेकम दीक्षा, संतोखां मुक्खां तपसण तीव्र तितिक्षा। लघुसिंह परिपाटी नवमासी निरधारी', पहले उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। १. इससे पहले उनको समुच्चय के वजन और रात की बारी की बख्शीश थी। २. रतनगढ़ ३. साध्वी मूलांजी और दाखांजी दोनों ही दिवेर की थीं। देहली दीपक न्याय से मध्यवर्ती दिवेर दोनों के साथ जुड़ जाता है। ४. दसा ओसवाल लघुवंशी कहलाते हैं। ५. देखें प. १ सं. ४२ १०६ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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