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________________ ४. आगम अवलोकन समन, समये लेखन-कार्य। आर्य! समाचरता क नहिं तथा कार्य अनिवार्य? ५. इणविध विहरण आदि रो वार्षिक विवरण व्यास । खास-खास अवगत करै, शासनेश शुभ-भास।। ६. उपालम्भ सालम्ब ही, सावकाश स्याबाश। यथायोग्य देवै यतिप, श्रमण-सती सोल्लास।। (चतुर्भिः कुलकम्) ७. 'समये-समये स्वामी, साद सुहामणे, मेटण खलता-खामी जि, सीखड़ली भणे। संयम भार समाह्यो, जिण निज खंधले, कांचनगिरि ऊंचायो जि, तिण निज भुजबले।। ८. आत्मोद्धार विचारी, नितप्रति निर्वहै, शाश्वत संपति सारी, सहसा संग्रहै। अंश अणी मत चूको, उच्च कुलोप्पना! ध्येय ध्यान में टूको, मुनिवर शुभमना।। ६. स्नेह राग रो दागो, मत लागो कदा, इण जागरणा जागो, रात्रिदिवं सदा। दूर रहो सन्निकृष्टे, एक स्वभाव में, सम्मुखीन हो पृष्ठे, भाव विभाव में।। १०. भैक्षवगण-मर्यादा, अविवादास्पदा, आराधो बिन बाधा, मुदितमना मुदा। रीझ-खीज समभावे, गणपति री खमो, सहू सरीखे दावे, गणवन में रमो।। ११. एक समान प्रवृत्ती, वृत्ति इक सारखी, नीति रीति अरु भित्ती परखो पारखी। संघ सकल संबंधी, इक गणपाल स्यूं, एकज सूत्रे सन्धी, मौक्तिक-माल ज्यूं।। १२. सारभूत जग एको, देखो प्यार स्यूं, एकै बिन नहिं लेखो, शून्य हजार स्यूं। १. लय : सायर लहर स्यूं जाणै जि १०२ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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