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________________ २३. रण - कुक्षि री धारिणी, जिन-जननी कहिवाय । तो क्यूंकर ऊणी हुवै, अजिन-जिनोपम माय ।। कलश २४. कर मधुर आमन्त्रण सभा में, मातृ- उपकृति संथणी, बगसीस बारी बोझ री, आजन्म की गणिवर गुणी । सब छूट पांती असण-पाणी री करी जीवन सुधी, अरु च्यार श्रमणी हृदयगमणी चाकरी हित विमलधी ।। 'आज आनन्दा रे, २५. सारो संग उमंग स्यूं, जम्पै हे जगदीश ! थोड़ी है जेती करो, जननी नै बगसीस । । २६. कानकंवरजी नै गणी, तिण ही दिन दोफार । बारी री बगसीस की, और उतार्यो भार । । २७. विहरत श्री बीदासरे, समवसऱ्या गणनाथ । माघमहोत्सव कारणे, साथ श्रमण संघात ।। २८. पुरजन निज परिवार स्यूं, प्रमुदित गुरु-मुख भाल । कालूयशोविलास री, जमी चवदमी ढाळ।। ढाळ: १५. दोहा १. अब बीदासर शहर में समुदित शोभा पाय । वार्षिक मर्यादोत्सवे, श्रमण- सती समुदाय ।। २. सद्गुरु चरण सरोज री, साझै सेव महान । धन्य घड़ी जीवन जड़ी, धन्य भाग निज मान ।। ३. किसो पठन-पाठन विषे, कियो नयो अभ्यास ? स्मरण निशा-जागरण-युत, कियो न वा प्रतिवास? १. लय : आज आनन्दा रे उ. १, ढा. १४, १५ / १०१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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