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________________ 50 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद बौद्ध ग्रन्थों में लिच्छवी, मल्ल, बुली, भग्ग, कालाम, शाक्य, विदेह, ज्ञातृक, मौरिय, कोलिय आदि गणतन्त्रों के उल्लेख हैं। किन्तु इन गणराज्यों को आधुनिक युग की गणन्त्रात्मक अथवा प्रजातन्त्रात्मक व्यवस्था के समान नहीं पाते। क्योंकि इनके प्रत्येक नागरिक को मताधिकार प्राप्त नहीं था। किन्तु वह किसी परिवार विशेष के लिए ये विशेषाधिकार थे। यह कुछ इस प्रकार की व्यवस्था थी जैसे प्राचीन रोम, एथेंस, स्पार्टा, कार्थेज, मध्ययुगीन वेनिस, संयुक्त नीदरलैण्ड और पोलैण्ड की शासन व्यवस्था भी वर्ग विशेष में निहित थी, परन्तु इन्हें लोकतन्त्रात्मक राज्य ही माना जाता था। गणतन्त्रात्मक शासन पद्धति और उसके संविधान, न्याय व्यवस्था के विविध पक्षों का विवेचन त्रिपिटक साहित्य में प्राप्त है। महावीर और बुद्ध के समकालीन होने से महावीरयुगीन गणतन्त्रात्मक व्यवस्था का आधार उस साहित्य में खोजा जा सकता है। 5. जैनागमों की भाषा जैन परम्परा के सन्दर्भ में यह सर्वसम्मत है कि जिन का उपदेश एवं वाणी ही जैनागम है। चूंकि महावीर जिन थे, अतः उनकी वाणी को प्रमाणभूत माना गया। __ जैन धर्म के सन्दर्भ में गुरु अपने शिष्यों को सूत्रों, आगमों की वाचना' देते हैं, और शिष्य भी विनयपूर्वक वाचना को ग्रहण करता है। सूत्रकाल में सूत्र वाचना और अर्थकाल में अर्थवाचना तो प्रत्येक गच्छ में प्रत्येक दिन होती ही रहती है। ऐसी वाचनाएँ महावीर की परम्परा में सैकड़ों हो गई हैं। किन्तु यहां उन विशेष वाचनाओं का सन्दर्भ है, जो जैन परम्परा में एक विशिष्ट घटना की भांति प्रसिद्ध है। जैन परम्परानुसार सभी काल में होने वाले तीर्थंकर द्वादशांगी का उपदेश/वाचना देते हैं और उन सभी का उपदेश भी एक ही होता है। जैसा कि जैनागमों में कहा गया है कि "जो अरिहंत हो गए हैं, जो अभी वर्तमान में हैं और जो भविष्य में होंगे, उन सभी का एक ही उपदेश है कि किसी भी प्राण भूत, जीव और सत्व की हत्या मत करो, उनके ऊपर अपनी सत्ता मत जमाओ, उनको गुलाम मत बनाओ और उनको मत सताओ, यही धर्म ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है जो विवेकी पुरुषों ने बताया है (I. आचारांगसूत्र I.4.1.1-2, II. सूत्रकृतांग, I.2.1.14, I.2.3.74 [160])। 1. कैलाशचन्द्र जैन, जैन धर्म का इतिहास, भाग-1, पृ. 247 से आगे (f.)। 2. वाचना का सामान्य अर्थ है-“पढ़ाना"।
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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