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________________ महावीरकालीन सामाजिक और राजनैतिक स्थिति 47 होता था। वह साम, दाम, दण्ड, भेद नीति में कुशल व नीतिशास्त्र में निपुण, अर्थशास्त्र में पारंगत, औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी-इन चार प्रकार की बुद्धियों में प्रवीण होता था। राजा श्रेणिक अपने अमात्य से अनेक कार्यों और गुप्त रहस्यों के बारे में मन्त्रणा किया करता था (I. ज्ञाताधर्मकथा, I.15-16, II. निरयावलिका, 1.31 [147])। इन बातों से उस समय के मुख्यमंत्री की विशेषताओं का पता चलता है। __ मंत्री-परिषद् का प्रभाव राजा की योग्यता पर आधारित था तथा नीति-निर्धारण में भी उसका प्रभाव रहता था। कौटिल्य के अनुसार राजा को मंत्री-परिषद् से सलाह लेनी चाहिए। उनके अनुसार इन्द्र को सहस्राक्ष इसीलिए कहा गया, क्योंकि उसकी मंत्री-परिषद् में 1000 बुद्धिमान पुरुष थे, जो उसके नेत्ररूप थे (अर्थशास्त्र, 1.10.5 [148])। जैसे व्यवहार व नीति कार्यों में विचार-विमर्श करने के लिए मंत्री की आवश्यकता होती थी, वैसे ही धार्मिक कार्यों के लिए पुरोहित' की। विपाकश्रुत में पुरोहित राज्योपद्रव शान्त करने के लिए अष्टमी और चतुर्दशी आदि तिथियों को जीवित बालकों के हृदयपिण्ड के मांस से शांति होम किया करते थे (विपाकश्रुत, I.5.14-15 [150])। जिसके प्रभाव से जितशत्रु राजा शीघ्र ही शत्रु को परास्त कर देता था। न्याय-व्यवस्था शांति के समय राजा का मुख्य कार्य न्यायिक प्रशासन सम्भालना था। न्याय-प्रशासन में न्यायालय होते थे। वे कानून तोड़ने पर निर्णय लेती थी, परन्तु अंतिम निर्णय राजा के अधीन होता था। न्याय तथा अन्य कुछ मामलों के सन्दर्भ में 'विनिच्चयामच्छ (न्यायिक मंत्री), पुरोहित और सेनापति राजा को सलाह देते थे। राजा के न्याय पर उनका पूर्ण प्रभाव होता था।' 1. स्थानांग में चक्रवर्ती राजा के सप्तरत्नों में पुरोहित की भी गणना की गई है (स्थानांग, 7.68 [149])। 2. In times of peace, the principal work of the king was to attend to the adminis tration of justice.........the king that he gave decisions in law suits. The final decision in law courts as well as the final word regarding the punishment for breaking the law remained with him. K.C. Jain, Lord Mahāvīra and His Times, p.222. 3. The Ministers, especially the Vinichchayāmachcha, and also the Purohita and the Senāpati, both took part in the administration of justice adviced the king and, in some cases, had some influence upon his judgement., op.cit., p. 222.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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