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________________ महावीरकालीन सामाजिक और राजनैतिक स्थिति 27 3.398 [89])। भगवती एवं औपपातिक में निम्नलिखित वैदिक शास्त्रों का उल्लेख है-छह वेदों में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, इतिहास (पुराण) और निघण्टु-छह वेदांगों में संख्यान (गणित), शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छंद, निरुक्त और ज्योतिष-छह उपांगों में वेदांगों में वर्णित विषय और षष्टितंत्र (I. भगवती, 2.1.24, II. औपपातिक, 97 [90])। बौद्ध ग्रन्थ दीघनिकाय में भी तीन वेद, जिनमें निघण्टु (वैदिक शब्दकोश), केटुभ (कल्प), अक्षरप्रभेद (घनपाठ जटापाठ आदि), शिक्षा (निरुक्त) एवं इतिहास शामिल हैं। पदज्ञ (कवि), वैयाकरण, लोकायत एवं ज्योतिष (सामुद्रिक) शास्त्र (महापुरुष लक्षण-ज्ञान) आदि विषयों का उल्लेख मिलता है (दीघनिकाय, सीलक्खन्धवग्गपालि III.1.256 [91])। ___अनुयोगद्वार और नंदी में कुछ लौकिक मिथ्याश्रुत का उल्लेख किया गया है-भारत, रामायण', भीमासुरोक्त, कौटिल्य (कोडिलय), घोटकमुख, शकटभद्रिका, कासिक, नागसूक्ष्म, कनकसप्तति, वैशिक, वैशेषिक, बुद्धशासन, कपिल, लोकायत, षष्टितंत्र, माठर, पुराण, व्याकरण, नाटक, बहत्तर कलाएँ और अंगोपांग सहित चार वेद (I. अनुयोगद्वार, 2.49 एवं 9.548, II. नंदी, 4.67 [93])। जैन आगमों में पापश्रुत के अनेक प्रकारों का उल्लेख हुआ है। जो शास्त्र पाप का उपादान होता है वह पापश्रुत कहलाता है (I. आवश्यकनियुक्ति अवचूर्णि भाग-2 पृ. 136, I. उत्तराध्ययनबृहवृत्ति, पत्र-617, समवाओ, पृ.154 पर उद्धृत [94])। सूत्रकृतांग में 64 प्रकार के पापश्रुत कहे गये हैं1. भौम-भूगर्भ शास्त्र, 2. उत्पात-प्रकृति विप्लव और राष्ट्र विप्लव का सूचक शास्त्र, 3. स्वप्न-स्वप्नशास्त्र, 4. अन्तरिक्ष-ज्योतिषशास्त्र, 5. अंग-अंगविद्या, 6. स्वर-स्वर-शास्त्र, 7. लक्षण-सामुद्रिक शास्त्र, हस्तरेखा-विज्ञान, 8. व्यंजन-तिल आदि चिन्हों के आधार पर शुभ-अशुभ बताने वाला शास्त्र, 9. स्त्रीलक्षण-स्त्रीलक्षण-शास्त्र,10. पुरुषलक्षण-पुरुषलक्षण-शास्त्र, 11. हयलक्षण-अश्वलक्षण-शास्त्र, 12. गजलक्षण- हस्तिलक्षण- शास्त्र, 13. गौलक्षण-बैललक्षण-शास्त्र, 14. मेषलक्षण-मेषलक्षण-शास्त्र, 15. कुक्कटलक्षण- कुक्कटलक्षण-शास्त्र, 16. तीतरलक्षण- तीतरलक्षण-शास्त्र, 17. वर्तकलक्षण-बटेरलक्षण-शास्त्र, 18. लावकलक्षण-लावालक्षण-शास्त्र, 19. चक्रलक्षण-चक्रवर्ती के चक्र का लक्षण-शास्त्र, 20. छत्रलक्षण-चक्रवर्ती के छत्र का लक्षण-शास्त्र, 21. चर्मलक्षण-चक्रवर्ती के चर्म का लक्षण-शास्त्र, PHHHH 1. पूर्वाह्न में भारत (महाभारत) और अपराह्र में रामायण पढ़ा जाता था। दोनों को लौकिक भाव आवश्यक क्रियाओं में गिना है (अनुयोगद्वार, 1.25 [92])।
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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