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________________ जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद अनुशासन, तप, आचार और चारित्र के योगों को प्राप्त करता है, जिससे वह अपने तथा अन्य मतों को बताने में सक्षम होता है (उत्तराध्ययन, 29.60 [86])। 26 ऋषिभाषित में उस विद्या को महाविद्या बताया है जो सभी विद्याओं में उत्तम है। जिसकी साधना करने से समस्त दुःखों से मुक्ति प्राप्त होती है । जिस विद्या से बंध और मोक्ष का, जीवों की गति और अगति का ज्ञान प्राप्त होता है, तथा जिससे आत्मा के शुद्ध स्वरूप का साक्षात्कार होता है, वही विद्या सम्पूर्ण दुःखों को दूर करने वाली है (Rsibhāsita Sutra, 17.1-2 [87])। दशवैकालिक में शिक्षा के चार उद्देश्यों को स्पष्ट किया गया है - 1. मुझे श्रुत प्राप्त होगा, 2. मैं एकाग्रचित्त होऊँगा, 3. मैं अपने आपको धर्म में स्थापित करूंगा, 4. मैं स्वयं धर्म में स्थित होकर दूसरों को धर्म में स्थित करूंगा, इसलिए अध्ययन करना चाहिए (दशवैकालिक, 9.4.5 [88])। इस प्रकार यहाँ अध्ययन का प्रयोजन ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ चित्त की एकाग्रता तथा धर्म में स्वयं का स्थित होना तथा दूसरों को स्थित करना माना गया है। विद्यार्थियों में भक्ति और धार्मिक भावना का उत्थान और विकास करना, शिक्षा का मुख्य उद्देश्य रहा होगा, ऐसा कह सकते हैं। वह युग धार्मिक पुनर्जागरण का युग था जब विभिन्न धार्मिक मतवादी अपने-अपने मतों का प्रचार प्रसार कर रहे थे। उस युग में श्रुत परम्परा प्रचलित थी अतः समस्त धार्मिक साहित्य को मुखस्थ (कंठस्थ ) करना, धर्म गुरुओं और विद्या गुरुओं आचार्यों का प्रथम कर्तव्य था ताकि अपने शिष्यों तक वह ज्ञान राशि पहुँचा सके और ज्ञान का प्रसार कर सके । अतः राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण और प्रसार शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य था । शिक्षा का उद्देश्य मात्र आजीविका के लिए सामान्य ज्ञान मात्र करा देना ही नहीं था अपितु उस समय अनेक तरह की विद्याएँ एवं कलाएँ प्रचलन में थीं। स्त्रियों के लिए 64 और पुरुषों के लिए 72 कलाओं में प्रवीण होने के प्रमाण भी उपलब्ध होते हैं । अतः विभिन्न विषयों में विशेषज्ञ तैयार करना भी शिक्षा का परम उद्देश्य था । शिक्षा का सर्वोपरि उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति और सुखी होने का है, क्योंकि जैन दर्शन में मुक्ति और मोक्ष की सत्ता को स्वीकार किया गया है। पाठ्यक्रम प्राचीन जैनसूत्रों में अनेक वैदिक शास्त्रों का उल्लेख आया है । स्थानांग में ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद - इन तीन वेदों का उल्लेख मिलता है ( स्थानांग,
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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