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________________ उपसंहार 233 स्वयंभूकृत सृष्टि का विवरण है। इसके अतिरिक्त कर्मोपचय सिद्धान्त और अवतारवाद का सामान्य विवेचन है। वस्तुतः इस अध्याय में शोध में निर्धारित पंचमतों के अतिरिक्त आगमों में आगत विभिन्न मतों की सामान्य चर्चा इस दृष्टि से की गई कि पंचमतों के अतिरिक्त भी जो छोटे-बड़े मतवाद हैं, उनका एक जगह संग्रहण हो जाए। इस प्रकार अनेक दार्शनिक वाद जैन आगमों में वर्णित हुए हैं, जो 600 ई.पू. इस देश में प्रचलित अनेक तात्त्विक विचारधाराओं से सम्बन्धित है। क्रिया, अक्रिया, अज्ञान, विनय, शाश्वत-अशाश्वत, देहात्म, सृष्टिकर्तृत्त्व, नियतानियत इत्यादि अनेक विषयों को लेकर ये उदित हुए, जिनका भारतीय जनमानस पर आज भी प्रभाव देखा जाता है। ये वे विचार थे, जिनके आधार पर आगे चलकर कुछेक ने सुव्यवस्थित दर्शन के रूप में पहचान कराई, क्योंकि उन्हें पर्याप्त लोक-समर्थन का आलम्बन मिला। पारस्परिक चर्चा-वार्तालाप, शास्त्रार्थ, वाद-प्रतिवाद आदि की दीर्घ यात्रा ने इनको पूर्ण रूप प्रदान किया और कुछेक विचार समय के साथ नष्टप्रायः हो गए। मैंने जैन आगम ग्रन्थों से जो पंचमत (पंचभूतवाद, एकात्मवाद, क्षणिकवाद, सांख्यमत, और नियतिवाद) लिए हैं, मैं आशा करूँगी कि इस तरह और भी जो मत प्रचलित थे जैसे- क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद, विनयवाद, अवतारवाद, स्फोटवाद, त्र्यणुकवाद आदि-आदि उनके सन्दर्भ में कोई अन्वेषक स्वतन्त्र रूप से एक एक विषय को लेते हुए शोध कार्य करेंगे तो मेरा यह प्रयास सार्थक होगा। जैनागमों में इन पंचमतवादों पर भी अलग-अलग रूप से कार्य करने का दिशा निर्देशन प्राप्त होगा। साथ ही साथ विभिन्न मत-मतान्तरों की समकालीन सामाजिक व राजनैतिक परिस्थितियों पर भी अनुसंधान किया जा सकता है।
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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