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________________ 232 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद क्योंकि यदि आत्मा का ही कर्तत्व नहीं होगा तो व्यक्ति के जीवन में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष तथा पुरुषार्थ आदि क्रियान्वित नहीं हो पायेंगे। उसके जीवन के सभी व्यापार-पुण्य-पाप, शुभ-अशुभ कार्य का कोई महत्त्व नहीं रहेगा। किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता। उस युग में न केवल आत्मा सम्बन्धी प्रश्न ही महत्त्व के थे, अपितु पंचभूत आदि विषय भी गहन चर्चा के विषय थे। एक अन्य मत के अनुसार कुछ पाँचभूत और आत्मा इन छः तत्त्वों को मानते थे तथा उनकी मान्यतानुसार आत्मा और लोक शाश्वत (नित्य) है। जिनका किसी प्रकार से नाश नहीं होता। इस प्रकार कूटस्थ नित्य आत्मा की व्यवस्था मानने पर जन्म मरण रूप संसार फलित नहीं हो पायेगा। क्योंकि कूटस्थ नित्य आत्मा का एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर पर्यायों का धारण करना सम्भव नहीं होता। षष्ठ अध्याय नियतिवाद से सम्बन्धित है। आत्म अस्तित्व और आत्माओं के देहान्तरण या पुनर्जन्म की अवधारणा में इनकी पूर्ण आस्था थी। जहां कुछ सम्प्रदायों ने इस बात को मान्यता दी कि पुनर्जन्म के क्रम में मनुष्य स्वयं को बेहतर बना सकता है। आजीवक मत का कहना था कि समूचे ब्रह्माण्ड के क्रियाकलाप, नियति नामक ब्रह्मांडीय शक्ति से संचालित होते हैं, जो सभी घटनाओं का निर्धारण करती है इसलिए सूक्ष्मतम स्तर पर मनुष्य का भाग्य भी इसी से निर्धारित होता है और इसमें परिर्वतन या विकास की गति को तेज करने के व्यक्तिगत प्रयासों का कोई स्थान नहीं है। नियतिवादी एक तरफ घोर तपस्वी थे, वहीं दूसरी तरफ जैसा होना है वैसा होगा ही इस तरह की मान्यता रखने वाले थे। निश्चित ही यह नियतिवादियों की अज्ञानमूलक प्रवृत्ति प्रतीत होती है। सप्तम अध्याय महावीरकालीन अन्य मतवाद में इन पंचमतों के अतिरिक्त आगमों में आगत विभिन्न मतों का संक्षेप में विवरण है। इसमें श्रमणों के मुख्य पांच प्रकार के मतों-निर्ग्रन्थ, तापस, शाक्य, परिव्राजक और आजीवकों की साधना चर्या का संक्षेप में विवेचन दिया है। उसके बाद चार समवसरण अवधारणा में क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद, विनयवाद का विवरण है। इसके बाद सृष्टि उत्पत्ति सम्बन्धी विभिन्न मतों के क्रम में देवकृत सृष्टि, ब्रह्माकृत सृष्टि, अण्डकृत सृष्टि, प्रधानकृत सृष्टि, ईश्वरकृत सृष्टि और
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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