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________________ महावीरकालीन अन्य मतवाद 225 2. शुद्ध आत्मा की अवस्था (राग-द्वेष रहित कर्म-बंधन से मुक्त आत्म-स्थिति) 3. पुनः अशुद्ध आत्मा की अवस्था (क्रीड़ा एवं राग या प्रद्वेष के कारण __पुनः कर्मरज से लिप्त हो जाता है।) इन तीन अवस्थाओं के कारण शीलांक ने इन्हें त्रैराशिक कहा है, क्योंकि वे आत्मा की तीन राशि अर्थात् अवस्थाएँ बतलाता है। जो गोशालक का मत है (सूत्रकृतांगवृत्ति, पत्र-46 [609])। संसार के भिन्न-भिन्न देशों तथा धर्मों में अवतारवाद सिद्धान्त धर्मोपनियम तथा श्रद्धा का विषय रहा है। संसारभर के सर्व धर्मों में प्रायः यह मान्य सिद्धान्त के रूप में स्वीकृत है। बौद्ध परम्परा में भी अवतारवाद सिद्धान्त मान्य था। जातक कथाएँ बुद्ध के पूर्वावतारों की विशद व्याख्या करती है। महायान पंथ में अवतार की मान्यता अधिक दृढ़ है। 'बोधिसत्त्व' कर्मफल की पूर्णता होने पर बुद्ध के रूप में अवतरित होते हैं तथा निर्वाण की प्राप्ति के अनन्तर भी बुद्ध भविष्य में अवतार धारण करते हैं (ललितविस्तर, समुत्साहपरिवर्त्त, 18 एवं प्रचलपरिवर्त, 34-35 [610])। बौद्धों में अवतार तत्त्व का पूर्ण निदर्शन हमें तिब्बत में दलाईलामा की कल्पना में उपलब्ध होता है। तिब्बत में दलाईलामा अवलोकितेश्वर बुद्ध के अवतार माने जाते हैं। तिब्बती परंपरा के अनुसार ग्रेर्दैन द्रुप (1473 ई. सन्) नामक लामा ने इस कल्पना का प्रथम प्रादुर्भाव किया, जिसके अनुसार दलाईलामा धार्मिक गुरु तथा राजा के रूप में प्रतिष्ठित किए गए। ऐतिहासिक दृष्टि से लोजंग-ग्या-मत्सो (1616-1682 ई.) नामक लामा ने ही इस परम्परा को जन्म दिया। तिब्बती लोगों का दृढ़ विश्वास है कि दलाईलामा के मरने पर उनकी आत्मा किसी बालक में प्रवेश करती है, जो उस मठ के आसपास ही जन्म लेता है। इस मत का प्रचार मंगोलिया के मठों में भी विशेष रूप से है। पारसी धर्म में सामान्यतः अवतार की कल्पना उपलब्ध नहीं है। तथापि ये लोग राजा को पवित्र तथा दैवी शक्ति से सम्पन्न मानते थे। इसलिये राजा को देवता का अवतार मानना यहां स्वभावतः सिद्ध सिद्धान्त माना जाता था। यहूदी भी ईश्वर के अवतार मानने के पक्ष में हैं। बाइबिल में स्पष्टतः उल्लेख है कि ईश्वर ही मनुष्य का रूप धारण करता है। यूनानियों में अवतार
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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