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________________ महावीरकालीन अन्य मतवाद 217 आकाश, बिजली, दिशा आदि) का उपासक था। वह प्रकृति को देव रूप में स्वीकार करता था। मानवीय शक्ति सीमित है, वह इस विशाल ब्रह्माण्ड की रचना कैसे कर सकती है। ऐसी कोई दैवीय शक्ति ही है, जो सृष्टि की रचना कर सकती है। अतः देवकृत सृष्टि उत्पत्ति की अवधारणा अस्तित्व में आई। उपनिषदों में देवताओं को स्रष्टा बताया है तथा देवताओं के वीर्य के हवन से संसारोत्पत्ति को प्रस्तुत किया गया है (I. ऐतरेयोपनिषद, 2.1, II. छांदोग्योपनिषद्, 5.8.2 [577])। ब्रह्माकृत सृष्टि किसी अन्य के मत में ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना हुई (सूत्रकृतांग, I.1.3.64 [578])। मनुष्य में तो इतना सामर्थ्य है ही नहीं और देवता भी मनुष्यों से भले शक्तिशाली हों किन्तु उनमें भी इस विशाल ब्रह्माण्ड को रचने का सामर्थ्य कहां, अतः उससे भी शक्तिशाली व्यक्ति की कल्पना अस्तित्व में आई। जैसा कि उपनिषदों में कहा गया है-विश्व का कर्ता और भुवन का गोप्ता (रक्षक) ब्रह्मा देवों में सर्वप्रथम हुआ (मुण्डकोपनिषद्, 1.1 [579]) और वह सृष्टि से पहले अकेला ही था (छांदोग्योपनिषद्, 2.3 [580])। ब्रह्माकृत सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में वैदिक साहित्य में स्थान-स्थान पर विस्तृत विवेचन मिलता है। ईश्वरकृत सृष्टि कुछ दार्शनिक ईश्वर को सृष्टि का कर्ता मानते हुए कहते हैं कि जीव-अजीव से युक्त तथा सुख-दुःख से समन्वित यह लोक ईश्वरकृत है (सूत्रकृतांग, I.1.3.65 [581])। सूत्रकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में ईश्वरकारणिक सिद्धान्त का तृतीय पुरुष के रूप में उल्लेख हुआ है, जिनके मत में इस संसार में सभी धर्मों का ईश्वर कारण है। ईश्वर उनका कार्य है, ईश्वर द्वारा प्रणीत है, ईश्वर से उत्पन्न है, ईश्वर से प्रकाशित है, ईश्वर में अभिसमन्वागत है और ईश्वर में ही व्याप्त होकर रहते है। जैसे-व्रण शरीर में उत्पन्न होता है, शरीर में बढ़ता है, शरीर में अभिसमन्वागत हो जाता है और शरीर में ही व्याप्त होकर रहता है इसी प्रकार धर्मों का भी ईश्वर कारण है, ईश्वर उसका कार्य है, ईश्वर द्वारा प्रणीत है, ईश्वर से उत्पन्न है, ईश्वर से प्रकाशित है, ईश्वर में अभिसमन्वागत है और ईश्वर में ही व्याप्त होकर रहते हैं। इसी तरह मेद, वल्मीक (दीमक का
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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