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________________ 216 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद होकर सुदुश्चर धर्म का आचरण करना चाहिए (उत्तराध्ययन, 18.33 [570])। आवश्यकसूत्र में साधक कहता है-मैं अक्रिया को छोड़ता हूँ तथा क्रिया को स्वीकार करता हूँ (आवश्यकसूत्र, पृ. 290 [571])। उपर्युक्त तथ्यों से यह प्रतिपादित होता है कि महावीर क्रियावादी थे। नियुक्तिकार भद्रबाहु तथा उसके बाद चूर्णिकार जिनदासगणि तक निर्ग्रन्थ धर्म प्रस्तुत क्रियावाद का ही भेद अथवा अंग रहा है। नियुक्ति में कहा गया है-जो सम्यक्दृष्टि है, वे क्रियावादी हैं (सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा-121 [572])। किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि सारे क्रियावादी सम्यक्दृष्टि ही होते हैं। चूर्णिकार तो यहाँ तक कहते हैं कि निर्ग्रन्थों को छोड़कर 363 में अवशिष्ट सारे मिथ्यादृष्टि हैं (सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 253 [573])। 8-9वीं ई. शताब्दी के बाद के साहित्य तत्त्वार्थवार्तिक में इन मतों का विवेचन एकान्तवाद के रूप में किया गया है (तत्त्वार्थवार्तिक, 8.1 [574])। ग्यारहवीं शताब्दी के ग्रन्थ गोम्मटसार में इन 363 मतों को स्वच्छन्द दृष्टि वालों के द्वारा परिकल्पित माना है (गोम्मटसार-कर्मकाण्ड, गाथा-889 [575])। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि आगम युग में क्रियावाद की जैसी अवधारणा थी उत्तरकाल में वैसी नहीं रही। 4. जैन आगमों में सृष्टि उत्पत्ति सम्बन्धी विभिन्न मत जीव जगत्रूप सृष्टि की उत्पत्ति का प्रश्न प्रत्येक दर्शन में विचारणीय विषय रहा है। इसके सम्बन्ध में सभी परम्परा के दार्शनिकों ने अपने-अपने ढंग से चिन्तन प्रस्तुत किया है। जैनागमों में सृष्टि उत्पत्ति सम्बन्धी विविध मत प्रस्तुत हुए हैं। वे इस प्रकार हैंदेवकृत सृष्टि महावीर के समय कुछ व्यक्ति यह मानते हैं कि यह लोक 'देव' द्वारा उत्पन्न हुआ है (सूत्रकृतांग, I.1.3.64 [576]), जैसे एक किसान बीजों को वपन कर फसल उगाता है, वैसे ही देवताओं ने बीज वपन कर इस संसार का सृजन किया। वैदिक परम्परा में सृष्टिवाद के विविध पक्षों का निरूपण हुआ है। उस समय मनुष्यों का एक वर्ग शक्तिशाली प्राकृतिक तत्त्वों (अग्नि, वायु, जल,
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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