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________________ 1208 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद इस प्रकार एक भी सिद्धान्त (वाद) की स्थापना न करना, जो कि संजय का वाद था। उसी को संजय के अनुयायियों के लुप्त हो जाने के बाद, जैनों ने अपना लिया और उसके चतुर्भंग न्याय को सप्तभंगी में परिणत कर दिया।' संजयवेलट्ठिपुत्त के चार भंग वाले अनेकान्तवाद को लेकर उसे सात भंग वाला किया तथा एक भी सिद्धान्त की स्थापना न करना संजय के इस वाद का संजय के अनुयायियों के लुप्त हो जाने पर जैनों ने अपना लिया, इन स्थापनाओं का कोई वास्तविक आधार सामने नहीं आता तथा ये स्थापनाएँ बहुत ही भ्रामक हैं, आचार्य महाप्रज्ञ' का उपर्युक्त विवरण के बारे में अभिमत इस प्रकार है संजय का दृष्टिकोण अज्ञानवादी या संशयवादी था। इसलिए वे किसी प्रश्न का निश्चयात्मक उत्तर नहीं देते थे। भगवान् महावीर का दृष्टिकोण अनेकांतवादी था। वे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर निश्चयात्मक भाषा में देते थे। द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक-इन दो नयदृष्टियों से प्रश्नों का समाधान देते थे। ये ही दो नय अनेकान्तवाद के मूल आधार हैं। स्याद्वाद के तीन भंग मौलिक हैं-स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति और स्यात् अवक्तव्य। भगवान महावीर ने प्रश्नों के समाधान में और तत्त्व के निरूपण में बार-बार इनका प्रयोग किया है। संजय की प्रतिपादन शैली चतुर्भंगात्मक थी और महावीर की प्रतिपादन शैली त्रिभंगात्मक थी। फिर इस कल्पना का कोई आधार नहीं है कि संजय के अनुयायियों के लुप्त हो जाने से जैनों ने उसके सिद्धान्त को अपना लिया। वस्तुतः सत्, असत्, सत्-असत् और अनुभय (अवक्तव्य)-ये चार भंग उपनिषद् काल से चले आ रहे हैं। इन चार पक्षों की परम्परा बौद्ध त्रिपिटकों में भी दिखलाई देती है। बुद्ध के अव्याकृत प्रश्न-1. मरने के बाद तथागत होते हैं? 2. मरने के बाद तथागत नहीं होते ? 3. मरने के बाद तथागत होते भी हैं, और नहीं भी होते? 4. मरने के बाद तथागत न होते हैं, और न नहीं होते? (संयुत्तनिकाय, XL.4 एवं अंगुत्तरनिकाय, VII.6 [545])। उस समय चार विरोधी पक्ष उपस्थित करने की दार्शनिक शैली को ही प्रस्तुत करते हैं, अव्याकृत 1. राहुल सांकृत्यायन, दर्शन-दिग्दर्शन, पृ. 384-385. 2. सूयगडो, I.1.41 का टिप्पण, पृ. 46. 3. दलसुख मालवणिया, आगम युग का जैनदर्शन, पृ. 97.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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