SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 206 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद ......तुम पूछो कि तथागत मरने के बाद होते हैं ..... नहीं होते..... और यदि मुझे ज्ञात हो कि तथागत मरने के बाद होते हैं तो मैं तुम्हें बतलाऊँ कि वे होते हैं और यदि मुझे ज्ञात हो कि तथागत मरने के बाद नहीं होते तो मैं तुम्हें बतलाऊँ कि वे नहीं होते। मैं ऐसा भी नहीं कहता, मैं वैसा भी नहीं कहता, अन्यथा भी मैं नहीं कहता कि वे नहीं होते। मैं यह भी नहीं कहता कि वे नहीं नहीं होते। तथागत मरने के बाद नहीं होते, वे नहीं नहीं होते, तथागत मरने के बाद होते भी हैं और नहीं भी होते। तथागत मरने के बाद न होते हैं और न नहीं होते (दीघनिकाय, 1.2.180 [544])। इस बारे में राहुल सांकृत्यायन (20वीं ई. शताब्दी) का यह मानना है कि संजय के चार भंग वाले अनेकांतवाद को लेकर जैनों ने उसे सात भंग वाला किया। संजय ने देवता परलोक आदि तत्त्वों के बारे में अनिश्चित रहते हुए अपने इन्कार को चार प्रकार से कहा है 1. है?-नहीं कह सकता। 2. नहीं है-नहीं कह सकता। 3. है भी और नहीं भी-नहीं कह सकता। 4. न है और न नहीं है-नहीं कह सकता। इसकी तुलना कीजिए जैनों के सात प्रकार के स्याद्वाद से1. है?-हो सकता (स्याद् अस्ति) 2. नहीं है?-नहीं भी हो सकता (स्याद् नास्ति) 3. है भी और नहीं भी?-है भी और नहीं भी हो सकता है (स्यादस्ति च नास्ति च) उक्त तीनों उत्तर क्या कहे जा सकते हैं? इसका उत्तर जैन नहीं में देते हैं4. 'स्याद्' (हो सकता है)-क्या यह कहा जा सकता है (वक्तव्य) है? नहीं, . स्याद् अवक्तव्य है। 5. 'स्याद् अस्ति'-क्या यह वक्तव्य है? नहीं, स्याद् अस्ति अवक्तव्य है। 6. 'स्याद् नास्ति'-क्या यह वक्तव्य है? नहीं, स्यात् नास्ति अवक्तव्य है।
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy