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________________ महावीरकालीन अन्य मतवाद समवायांग तथा नंदी में दृष्टिवाद के बारे में इस प्रकार का कोई उल्लेख नहीं है । किन्तु आचार्य महाप्रज्ञ का ऐसा मानना है कि दृष्टिवाद नाम से ही यह प्रमाणित होता है कि उसमें समस्त दृष्टियों- दर्शनों का निरूपण है । दृष्टिवाद द्रव्यानुयोग है । तत्त्वमीमांसा उसका मुख्य विषय है इसलिए उसमें दृष्टियों का निरूपण होना स्वाभाविक है । यद्यपि ग्रन्थ नाम से यह प्रमाणित हो जाता है कि उसमें समस्त दृष्टियों - दर्शनों का निरूपण है तथापि मूल ग्रन्थ के अभाव में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। 197 उत्तरवर्ती व्याख्याकारों, जैसे जिनदासगणी ने सूत्रकृतांगचूर्णि ( 7वीं ई. शताब्दी), वीरसेन ने धवलाटीका ( 9वीं ई. शताब्दी), शीलांक ने आचारांगवृत्ति (9वीं ई. शताब्दी), अभयदेवसूरी ने स्थानांगवृत्ति ( 11वीं ई. शताब्दी), नेमिचन्द सिद्धान्त चक्रवर्ती ने गोम्मटसार ( 11वीं ई. शताब्दी) तथा सिद्धसेनसूरि ने प्रवचनसारोद्धार (12वीं ई. शताब्दी) में इन मतवादों को गणित की प्रक्रिया से समझाया, किन्तु इसे सही मानने का आधार सामने नहीं आता । विशेष जानकारी के लिए उपर्युक्त ग्रन्थों का अध्ययन किया जा सकता है 1 छठी ई. शताब्दी में नियुक्तिकार भद्रबाहु द्वितीय ने अस्ति के आधार पर क्रियावाद, नास्ति के आधार पर अक्रियावाद, अज्ञान के आधार पर अज्ञानवाद और विनय के आधार पर विनयवाद का प्रतिपादन किया (सूत्रकृतांगनिर्युक्ति, 12.3 [514]) I क्रियावाद चार समवसरणों में पहला है - क्रियावाद । क्रियावादी आत्मा का अस्तित्व मानते हैं तथा आत्मा को मूल में रखते हुए ही क्रियावाद का चिंतन किया गया है । क्रियावाद को प्रतिपादित करते हुए कहा गया है कि जो आत्मा, लोक, गति, आगति, शाश्वत, जन्म, मरण, च्यवन, उपपात को जानता है तथा जो अधोलोक के प्राणियों के विवर्तन को जानता है, आस्रव, संवर, दुःख और निर्जरा को जानता है, वह क्रियावाद का प्रतिपादन कर सकता है और जो इन सब चीजों को मानता है, वह क्रियावादी है (सूत्रकृतांग, I. 12.20 -21 [ 515] ) | क्रियावाद के संदर्भ में इसी प्रकार की व्याख्या दशाश्रुतस्कन्ध में भी मिलती है (तुलना, 1. सूयगडो, जैन विश्वभारती प्रकाशन, भूमिका, पृ. XXII.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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