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________________ नियतिवाद 175 महोपनिषद् एवं भावोपनिषद् में भी नियति शब्द का प्रयोग उपलब्ध होता है। महोपनिषद् के वाक्य में कहा गया है कि जिस प्रकार सूर्य नियति को नहीं छोड़ता है, नियति समय पर उदय एवं अस्त को प्राप्त होता है। उसी प्रकार महान् पुरुष नियति के नियामकत्व को नहीं छोड़ते हैं। भावोपनिषद् के उद्धरण में कहा गया है कि श्रृंगार आदि नौ रस नियतियुक्त हैं। अर्थात् जिन भावों से जो रस प्रकट होना होता है वही प्रकट होता है (ईशाद्यष्टोत्तरशतोपनिषद् पर उद्धृत, पृ. 375, 476 [452])। ___ उपनिषद् के उपर्युक्त उद्धरणों से स्पष्ट होता है कि नियति एक नियामक तत्त्व है। जिसके अनुसार विभिन्न घटनाएँ घटित होती है। पुराण साहित्य में भी नियति सम्बन्धी अवधारणाएँ प्राप्त होती है। हरिवंशपुराण में भवितव्यता की प्रामाणिकता अनेक श्लोकांशो में दृग्गोचर होती है। कंस ने अपने सहजनों की हत्या करने के बाद पश्चाताप करते हुए देवकी से कहा-“मैं बड़ा निर्दय हूँ और मैंने अपने प्रियों का ही शमन किया, क्योंकि विधि ने जो भाग्य में लिख दिया उसे में किसी प्रकार भी परिवर्तित नहीं कर सका" (हरिवंशपुराण, प्रथम खण्ड, संस्कृति संस्थान, बरेली, पृ. 256-257, 254 [453]) रामायण में भी नियति की कारणता दृष्टिगोचर होती है। बाली की मृत्यु के पश्चात् भगवान श्री राम, लक्ष्मण, सुग्रीव आदि को सांत्वना प्रदान करते हुए कहते हैं-जगत् में नियति ही सबका कारण है। नियति ही समस्त कर्मों का साधन है। नियति ही समस्त प्राणियों का विभिन्न कर्मों में नियुक्त करने में कारण है। (वाल्मीकि रामायण, किष्किन्धा काण्ड, 25.4 [454]) नियति की गति ऐसी है कि वह धन से, इच्छा से, पुरुषार्थ से अथवा आज्ञा से किसी के टाले नहीं टल सकती। इसके सामने सारे पुरुषार्थ निरर्थक हैं। इसलिए भाग्य ही सबसे उत्कृष्ट है और सब कुछ इसके अधीन है। भाग्य की गति परम है (वाल्मीकि रामायण, 6.113.25 एवं 1.58.22 [455])। __वेदव्यास ने नियति के स्वरूप को निम्न शब्दों में अभिव्यक्त किया है-नियतिवादी मानते हैं कि जगत् में जितने भी पुरुषकृत कार्य है उन सभी के पीछे दैव निमित्त है और दैववश ही देवलोक में बहुत से गुण उपलब्ध होते हैं (महाभारत, अनुशासनपर्व, 1.26 [456])।
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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