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________________ ix भूमिका त्रिपिटक और उपनिषदों के परिप्रेक्ष्य में संक्षिप्त रूप से तुलनात्मक विवेचन करने का प्रयास किया है। जैन आगमों में दार्शनिक विवरण बिखरा पड़ा है। यद्यपि यह स्पष्ट है कि जिन वादों की चर्चा आगमों में हुई है उन्हें वैदिक और अवैदिक दोनों ही परम्पराओं से किसी दर्शन के साथ पूर्ण रूप से नहीं जोड़ सकते, क्योंकि यह भारतीय दर्शन के विकास की प्रारम्भिक स्थिति थी। अतः प्रस्तुत शोध अध्ययन में मेरा दृष्टिकोण यह रहा कि आज विभिन्न दर्शनों के रूप में प्रतिष्ठित विचारधाराओं में कौन-कौन से वाद किस दर्शन विशेष में जा सकते हैं। यह स्पष्ट अथवा इंगित करने का प्रयास किया है। जैन परम्परा में यह माना जाता है कि वर्तमान जैनागम भगवान महावीर की सतत साधना से प्राप्त सत्यों का साक्षात् प्रतिफलन है, और ऐसे अर्हतों, द्रष्टाओं की रचना का न केवल अध्ययन करना अपितु समसामयिक साहित्य के परिप्रेक्ष्य में लिखना कुछ कठिन सा प्रतीत हो रहा था फिर भी एक छोटा सा प्रयत्न करने का प्रयास किया है। यह शोध मुख्यतः आगम साहित्याधारित है। शोध विषयानुसार जैन आगमों में पंचमतवाद-पंचभूतवाद, एकात्मवाद, क्षणिकवाद, सांख्यमत, और नियतिवाद है, जो दर्शन का विषय है। अतः इस शोध-प्रबंध में अंग आगमों में सूत्रकृतांग मेरा मुख्य आधार ग्रन्थ रहा, क्योंकि यह ग्रन्थ अन्य दार्शनिक मतों का विस्तृत वर्णन प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, भगवती, ज्ञाता, उपासकदशा आदि मुख्यतः उपयोग में लिए हैं। उपांग में दार्शनिक विषयों में राजप्रश्नीय भी मुख्य आधार ग्रन्थ रहा। जैन आगमों की शैली सूत्रात्मक है तथा प्रायः मत प्रवर्तकों के नामोल्लेख नहीं मिलते, इस हेतु अप्रत्यक्ष रूप से बौद्ध त्रिपिटकों एवं आगमिक व्याख्या साहित्य का उपयोग इस शोध में आवश्यक रूप से हुआ है। क्योंकि वहां विभिन्न मतवादों के आचार्यों का नामोल्लेख प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त प्रसंगानुकूल विभिन्न मत-दर्शन से सम्बन्धित अन्य आगमों एवं दार्शनिक ग्रन्थों का उपयोग भी यथावसर किया गया है। ___आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा संपादित जैन आगमों में अन्य दार्शनिक मतों की जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में विस्तृत व्याख्या आगमों में प्राप्त विभिन्न मतों के स्थल पर टिप्पण में या भाष्य रूप में की गई है। वह व्याख्या मुझे मूल स्रोत
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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