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________________ 146 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद औद्देशिक अपने निमित्त से पकाया हुआ आहार, मिश्रजात-साधु और गृहस्थ दोनों के निमित्त से तैयार किया गया भोजन, अध्यवपूर-साधु के लिए अधिक मात्रा में निष्पादित भोजन, पूतिकर्म-आधाकर्मी अंश के आहार से मिला हुआ भोजन, क्रीतकृत-खरीदकर लिया गया भोजन, प्रामित्य-उधार लिया हुआ भोजन, अनिसृष्ट-गृहस्वामी के बिना पूछे दिया जाता भोजन, अभ्याहृत-साधु के सम्मुख लाकर दिया जाता भोजन, स्थापित-अपने लिए पृथक् रखा हुआ भोजन, रचित-विशेष प्रकार का अपने लिए संस्कारित भोजन, कान्तारभक्त-जंगल पार करते घर से अपने पाथेय के रूप में लिया हुआ भोजन, दुर्भिक्षभक्त-अकाल पीड़ितों के लिए बनाया हुआ भोजन, ग्लानभक्त-बीमार के लिए बनाया हुआ भोजन, वादलिकभक्त-बादल आदि से घिरे दिन में-दुर्दिन में दरिद्र जनों के लिए तैयार भोजन, प्राघूर्णक भक्त-अतिथियों के लिए तैयार किया गया भोजन अम्बड परिव्राजक को खाना-पीना नहीं कल्पता तथा कन्द, मूल, फल, बीज और हरे तृण का सेवन भी नहीं कल्पता था। अम्बड परिव्राजक को मागधमान तोल के अनुसार आधा आढक जल लेना कल्पता था तथा वह स्वच्छ, छना हुआ तथा बहता पानी होना चाहिए। वह भी स्नान के लिए नहीं कल्पता। भोजन आदि के पात्र धोने के लिए व पीने के लिए ही कल्पता था। वह अर्हत् और अर्हन्त चैत्यों के अतिरिक्त अन्य को वन्दना नमस्कार नहीं करता था (औपपातिक, 118-119, 121-122, 133-135 [399])। औपपातिक के अनुसार एक बार ग्रीष्म ऋतु के समय अम्बड अपने सात सौ शिष्यों के साथ गंगा नदी के दोनों तटों (कांपिल्यपुर और पुरिमतमाल नगर) को रवाना हुए। वे चलते-चलते ऐसे जंगल में पहुँच गए, जहाँ अपने साथ लिया हुआ सारा पानी समाप्त हो गया तब अदत्त पानी अकल्पनीय होने की स्थिति में उन्होंने त्रिंदड, कुंडिका, रूद्राक्ष की माला आदि को एकान्त में छोड़कर, गंगा महानदी के बालु भाग में बिछौना तैयार कर भक्तपान का त्याग कर पूर्वाभिमुख होकर पद्मासन में बैठकर अरहंत श्रमण भगवान महावीर और अपने धर्माचार्य अम्बड परिव्राजक को नमस्कारकर सर्वप्राणातिपात का त्याग कर, संलेखनापूर्वक अपने शरीर का त्याग किया (औपपातिक, 115-117 [400])। इसके अतिरिक्त जैन आगमों में ऋषभदत्तब्राह्मण, गोबहुलब्राह्मण, बहुलब्राह्मण, सोमिलब्राह्मण (महावीरकालीन), सोमिलब्राह्मण (अरिष्टनेमिकालीन),
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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