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________________ 145 सांख्यमत 1 तालाब, बावड़ी के सिवाय उनमें प्रवेश करने का कल्प नहीं था । उन्हें शकट, पालखी में चढ़कर जाने का कल्प नहीं था । उन्हें घोड़े, हाथी, ऊँट, बैल आदि की सवारी करने का भी कल्प नहीं था । इनमें बलाभियोग का अपवाद था तथा नाटक, करतब, स्तुति - गायकों को सुनना, हरी वनस्पति का स्पर्श, रगड़ना, शाखाओं को मोड़ना, उखाड़ना आदि का भी कल्प नहीं था । उनको स्त्री, भोजन, देश, राज, चोर तथा जनपद कथा करने का भी वर्जन था । मिट्टी या काठ के बर्तन के सिवाय, लोहे या अन्य बहुमूल्य धातुओं के बर्तन का भी प्रयोग करना अकल्पनीय था। गेरुए वस्त्रों को छोड़कर अन्य रंगों के वस्त्र नहीं पहनते थे । केवल तांबे की अंगुठी को छोड़कर अन्य आभूषण नहीं पहनते थे । केवल गंगा की मिट्टी के अतिरिक्त अगर, चन्दन या केसर से शरीर को नहीं रगड़ते । उन परिव्राजकों को मगध देश के एक तोल, एक प्रस्थ जल लेना ही कल्पता था । मगध देश का एक आढक जल लेना ही कल्पता था । वह भी बहता हुआ हो, बंद जल नहीं हो सकता। वे परिव्राजक इस प्रकार के आचार या चर्या द्वारा विचरण करते हुए, बहुत वर्षों तक - परिव्राजक धर्म का पालन करते हैं। बहुत वर्षों तक वैसा कर मृत्युकाल आने पर देह त्याग कर उत्कृष्ट ब्रह्मलोक कल्प देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होते हैं । तदनुरूप उनकी गति और स्थिति होती है। उनकी स्थिति या आयुष्य दस सागरोपम कहा गया है ( औपपातिक, 97-112, 114 [398]) | औपपातिक में अम्बड परिव्राजक की शिष्य सम्पदा, आचार पद्धति का भी विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है - वह अम्बड परिव्राजक कांपिल्यपुर नगर में सौ घरों से भिक्षा लेता और सौ घरों में निवास करता था। एक ही समय में सौ घरों से भिक्षा व निवास करने के पीछे भगवान् महावीर ने यही कारण बताया कि अम्बड प्रकृति से अत्यन्त भद्र और विनीत तथा साधनाशील था । उस साधना तपस्या से उसे विशिष्ट शक्तियां प्राप्त हुईं अतएव जन - विस्मापन हेतु लोगों को आश्चर्य चकित करने के लिए वह एक ही समय में सौ घरों से आहार तथा निवास करता । उसने छट्ठमछट्ठ तपोकर्म द्वारा निरन्तर ऊर्ध्व बाहु करके सूर्याभिमुख आतापना, भूमि में तप का अनुष्ठान किया । वह कभी घुटनों तक के जल को पैरों से चलकर पार नहीं करता, वह गाड़ी आदि पर सवार नहीं होता था। गंगा की मिट्टी के सिवाय अन्य वस्तु का लेप नहीं करता । आधाकर्मिक
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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