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________________ 110 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद प्राचीनकाल में वेदान्त ही कहते थे। वेदान्त और उपनिषद् ये पर्यायवाची शब्द थे। मुण्डकोपनिषद् के इस कथन से कि "जिन्होंने वेदान्तशास्त्र द्वारा उसके अर्थस्वरूप परमात्मा को भली-भांति निश्चयपूर्वक जान लिया है तथा कर्मफल और कर्मासक्ति के त्याग रूप योग से जिनका अन्तःकरण सर्वथा शुद्ध हो गया है, ऐसे सभी प्रयत्नशील साधक मरणकाल में शरीर का त्याग करके परब्रह्म परमात्मा के परमधाम में जाते हैं और वहाँ परम अमृतस्वरूप होकर संसार अवस्था बंधन से सदा के लिए मुक्त हो जाते हैं" (मुण्डकोपनिषद्, 3.2.6 तथा कैवल्योपनिषद्, 1.4 [320])। यह पुष्ट हो जाता है कि उपनिषद् को वेदान्त माना जाता था। इनके अलावा भी श्वेताश्वतर में भी उपनिषद् के लिए वेदान्त शब्द का प्रयोग मिलता है-वेदान्त में अर्थात् उपनिषदों में परमगुह्य इस विद्या को पूर्वकल्प में प्रेरित किया गया था, जिसका चित्त अत्यन्त शान्त न हो, उस पुरुष को तथा पुत्र या शिष्य ही क्यों न हो, उसे वेदान्त विद्या को नहीं बतलाना चाहिए (श्वेताश्वतरोपनिषद्, 6.22 [321])। सृष्टि की उत्पत्ति के मूल कारण और स्वरूप के विषय में विभिन्न प्रकार के प्रश्न और उन प्रश्नों के समाधान मानव मस्तिष्क में प्राचीनकाल से लेकर आज तक चले आ रहे हैं। विश्व का मूल कारण क्या है? वह सत् है या असत्? सत् है तो पुरुष है या पुरुषेत्तर-जल, वायु, अग्नि, आकाश आदि में से कोई एक? इन प्रश्नों का उत्तर उपनिषदों के ऋषियों ने अपनी-अपनी प्रतिभा के बल से दिया है। और इस विषय में नाना मतवादों की सृष्टि खड़ी कर दी। सृष्टि विधान के अपौरुषेय और पौरुषेय सिद्धान्तों के विकास और उद्भव संबंधी अवधारणाओं का पाश्चात्य दर्शन में विशेषकर ग्रीक् दर्शन में अद्भुत साम्य मिलता है। यहाँ उस विचार साम्य को दर्शाने का प्रयत्न कदाचित् ही होगा। कुछ विचारकों के मतानुसार असत् से भी सत् की उत्पत्ति हुई है (तैत्तिरीयोपनिषद्, 2.7 [322])। प्रारम्भ में मृत्यु का ही साम्राज्य था, अन्य कुछ 1. R.D. Ranade, Constructive Survey of Upanishadic Philosophy, Bharatiya Vidya Bhavan, Chowapatty, Bombay, [1" edn. 1926), 2" edn., 1968. p. 73. 2. For the similar ideas, see, Ibid, pp. 72-75.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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